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रविवार, 22 अक्तूबर 2017

मेरा सपना

तुम हो मेरे कल्पना से परे
तुम साकार प्रतिमा हो
जिसे मैं देख, सुन और छू सकती हूँ

पर तुम्हारी चाहत की तस्वीर में
मैं अपनी तस्वीर जब भी ढूँढ़ती हूँ
वो तस्वीर अनजानी सी मुझे लगती हैं
एक बेगाना सा एहसास होता है

क्या ये हमारा भ्रम है
या हैं कोड़ी कल्पना
मेरे ख़ूबसूरत संसार में
ऐसी बातों का कोई मतलब तो नहीं

पर मन तो बेलग़ाम घोड़ा हैं
कभी-कभार भटकने ही लगता हैं
तुम तो मेरी चाहत मेरा संसार हो


तुमसे दूर जाने की कल्पना भी
मेरे लिए तूफ़ान से कम नहीं
तुम मेरे हो और सिर्फ मेरे हो
तुम्हारे कल्पना पर भी अधिकार हमारा है
ये छोटा सा संसार हमारा हैं !!!

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