यह ब्लॉग खोजें

Translate

विशिष्ट पोस्ट

सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

यादें

सूनी-सूनी अखियों में
भीगी-भीगी रतियों में
सूनी-सूनी गलियों में
दिल रोये मेरा तुम बिन
घर की दीवारों में
गम की अहातों से
मुँह जो चिढ़ाए मुझे
बतिया सुनाए मुझे
तानों की बातों से
नैन भिगोए मेरे
यादों की बातों ने
सूनी-सूनी अखियों में

भीगी-भीगी रतियों में 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें