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सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

दिलों का फ़ासला

दिल से दिल का ये फ़ासला अब
गहरी खाई में तब्दील होता गया
कहीं पैसों ने तो कहीं जातियों का
अहम् भावना में समाता गया
आदमी-आदमी की तरफ देखने में
शरम आज भरपूर आने लगा है
शितम्गर ये दुनिया तमाशा हमारा
कहीं न कहीं तो बनाता रहेगा
ज़मीनी हक़ीकत को हम देखकर के
स्वयं को हमारी पुरानी धरा में
कभी न कभी लौट जाना पड़ेगा
मिलजुल कर गलियों में गीतों का गायन
घर की डयोढ़ी पे बीते पूरी शाम
हँसी और ठहाकों से गूंजे दिशाए
वहीँ दिन और रातों हो पावन हमारी
सभी मिलके बाटे जो खुशियाँ हमारी
दिल से दिल की न दुरी कभी भी बने
खुशियों की सौगात हर घर में  हो.

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