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शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

ख़ामोशी

पलकों के कोनो से अश्रुधारा बह रही
नयनों के नीर से तन बदन भीगे मेरे
मानकर मुझको पराया भूल सब मुझको गए
थे कभी अपने जो मेरे आज बेगाने हुए

आठों पहर अठखेलियाँ थी गूंजती किलकारियां
अब उसी घर में हैं पसरी सूनापन खामोशियाँ
काश माँ की ममता में इतनी ताकत होती
कि वो कभी भी अपने बच्चों को अपने पास बुला पाती
उनके मन में अपने लिए आदर जगा पाती
ममता के आँचल को आँसू के बजाय
किलकारियों से भींगा पाती
जीवन परिवर्तनशील है
वक्त के साथ अपना रंग बदल लेती हैं
पर माँ में इतनी हिम्मत कहाँ कि
वो वक्त के साथ ममता का मायना बदल पाती
मेरी ये कविता उन बच्चों के लिए
एक छोटा सा सन्देश हैं
जिन्होंने अपने माता-पिता को
जीते जी बेगाना कर दूर देश चले गए
और फिर कभी उनकी कोई सुध न लि
माँ की ममता को यू बाज़ार में नीलाम
न करो मेरे दोस्तों
अपना भी वक्त कुछ वर्षों में
वैसा ही आने वाला हैं
प्रभु के इस वरदान को यू न ठुकराओ
अपने हृदय का दरवाज़ा खोल दो
सबको एक हो जाने दो!!

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