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बुधवार, 22 नवंबर 2017

किसान

बहे पावन पुर्वाही
मौसम में खुशियाँ आई
खुशनुमा दिन-रात शीतल
मंद-मंद मुस्काए मेरा दिल
रिमझिम-रिमझिम पड़ी फुवारे
तन-बदन भीगा मेरा
ये बारिश की चंद फुहारे
दिल की खुशियाँ लौटाए
दिल झूम-झूम के गाए
धरती की रौनक लौटने
अब इंद्रदेव हैं आये
नें हमारे तरप रहे थे
दर्शन तेरे पाने को
फसल हमारे बाट जो होते
हरदम तेरा रहते
पर तुम तो हो
अकड़ में अपने
जब भी आते जोर-शोर से
हमें बहा ले जाते
फिर भी मेरे-तेरे बीच
एक अटूट रिश्ता हैं
एक दूजे के बिन हमें दोनों
रह नहीं पाएंगे
कभी रूठना, कभी मनाना
हम दोनों का ताना-बाना
जीवन का हैं चक्र सुहाना!

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