एक दिन की बात है
मैं बड़ी निराश थी
ज़िन्दगी से उदास थी
खुशियाँ मुझसे नाराज़ थी
मुझे अपनों की दरकार थी
जिससे दिल की बात कह सकूँ
एक ऐसे रिश्ते की खोज में
मैं अकेली चल पड़ी
मैं करूँ तो क्या करूँ
अपनी चाहत किससे कहूँ
मेरे इर्द-गिर्द जो भी थे
सब मुझसे जुदा थे
सोच उनकी अलग थी
पर उनकी दुनिया में
मन मेरा रमा नहीं
अपनी उनसे जमी नहीं
उनको मैं कभी अच्छी लगी नहीं
सुर-ताल उनसे मिले नहीं
मैं मगन चलती रही
विघ्न-बाधाओं से लड़कर
सुख-दुःख के खट्टे-मिट्ठे
अनुभवों से गुज़रकर
कब मैं आम से ख़ास बन गयी
मेरा जीवन
कुछ लोगों के लिए
परिहास बनकर भी
दुनिया के लिए इतिहास बन गया
चाहत अपनी भी यही थी
मैं जानती थी
मैं सबसे अलग हूँ
फिर मैं भीड़ का हिस्सा क्यों बनू
कदम मेरे आगे बढ़ चले
फिर आखिर मैं पीछे क्यों मुरु
ज़िन्दगी ने जो भी हमको दिया
हमने हँस कर उसको जी लिया
शायद जिंदगी इसी का नाम है.
मैं बड़ी निराश थी
ज़िन्दगी से उदास थी
खुशियाँ मुझसे नाराज़ थी
मुझे अपनों की दरकार थी
जिससे दिल की बात कह सकूँ
एक ऐसे रिश्ते की खोज में
मैं अकेली चल पड़ी
मैं करूँ तो क्या करूँ
अपनी चाहत किससे कहूँ
मेरे इर्द-गिर्द जो भी थे
सब मुझसे जुदा थे
सोच उनकी अलग थी
पर उनकी दुनिया में
मन मेरा रमा नहीं
अपनी उनसे जमी नहीं
उनको मैं कभी अच्छी लगी नहीं
सुर-ताल उनसे मिले नहीं
मैं मगन चलती रही
विघ्न-बाधाओं से लड़कर
सुख-दुःख के खट्टे-मिट्ठे
अनुभवों से गुज़रकर
कब मैं आम से ख़ास बन गयी
मेरा जीवन
कुछ लोगों के लिए
परिहास बनकर भी
दुनिया के लिए इतिहास बन गया
चाहत अपनी भी यही थी
मैं जानती थी
मैं सबसे अलग हूँ
फिर मैं भीड़ का हिस्सा क्यों बनू
कदम मेरे आगे बढ़ चले
फिर आखिर मैं पीछे क्यों मुरु
ज़िन्दगी ने जो भी हमको दिया
हमने हँस कर उसको जी लिया
शायद जिंदगी इसी का नाम है.
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