चहुँ ओर उदासी छाई
हँसते खिलते चेहरे पर
आँसू की बूंदें आई
ये कैसी विपदा आई
खुशियों पर ग्रहण लगाई
सब कैद हुए घर-घर में
सब बिछड़ रहे हैं अपने
ये कैसी विपदा आई
सब ओर मचा है क्रंदन
मूक दर्शक घर और आंगन
हर ओर विरह की बातें
है दर्द भरा ये मौसम
ये कैसी विपदा आई
जीवन खामोश हुई है
आंसू नयनों में सूखे
मुख पर ख़ामोशी छाई
ये कैसी विपदा आई
हर ओर अकेलापन
हर घर में ख़ामोशी है
जो छोड़ गए इस जग को
अंतिम विदाई में उनके
गिनती के लोग खड़े हैं
ये कैसी विपदा आई
लुट गया सभी कुछ अपना
दिल को समझाऊ कैसे
आगे कुछ अच्छा होगा
ये सुनी सड़के फिर से
आबाद कभी क्या होगी .
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका बहुत बहुत आभार
हटाएंसच है हमसब वर्तमान परिस्थिति से सहम गये हैं। बस हौसला रखना है कि एक दिन फिर सुख के दिन आएँगे।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही मार्मिक रचना रची हैं।
आपका बहुत बहुत आभार
हटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार
हटाएंमर्मान्तक पीड़ा से गुजर रहे समय का
जवाब देंहटाएंसटीक और भावपूर्ण चित्रण
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
सर हमारा हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहूत-बहूत आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा और सटीक रचना!
जवाब देंहटाएंthanks Mam
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