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गुरुवार, 20 मई 2021

विपदा

ये कैसी विपदा आई
चहुँ ओर उदासी छाई
हँसते खिलते चेहरे पर 
आँसू की बूंदें आई 

ये कैसी विपदा आई 
खुशियों पर ग्रहण लगाई 
सब कैद हुए घर-घर में 
सब बिछड़ रहे हैं अपने 

ये कैसी विपदा आई
सब ओर मचा है क्रंदन 
मूक दर्शक घर और आंगन 
हर ओर विरह की बातें 
है दर्द भरा ये मौसम 

ये कैसी विपदा आई
जीवन खामोश हुई है 
आंसू नयनों में सूखे 
मुख पर ख़ामोशी छाई 

ये कैसी विपदा आई
हर ओर अकेलापन 
हर घर में ख़ामोशी है 
जो छोड़ गए इस जग को 
अंतिम विदाई में उनके 
गिनती के लोग खड़े हैं 

ये कैसी विपदा आई
लुट गया सभी कुछ अपना 
दिल को समझाऊ कैसे 
आगे कुछ अच्छा होगा 
ये सुनी सड़के फिर से 
आबाद कभी क्या होगी . 


10 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
  2. सच है हमसब वर्तमान परिस्थिति से सहम गये हैं। बस हौसला रखना है कि एक दिन फिर सुख के दिन आएँगे।
    आपने बहुत ही मार्मिक रचना रची हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. मर्मान्तक पीड़ा से गुजर रहे समय का
    सटीक और भावपूर्ण चित्रण
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें

    जवाब देंहटाएं
  4. सर हमारा हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहूत-बहूत आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही उम्दा और सटीक रचना!

    जवाब देंहटाएं