मन के मयखाने खोल रहे
रस समरसता का घोल रहे
आँखों के आँसू पोंछ रहे
रिश्ते अनजाने बोल रहे
वो घर-घर जाकर डोल रहे
मदद कोई जो मांगे उनसे
भाग-भाग कर पहुंचे उनतक
रिश्ते अनजाने बोल रहे
घर-घर से नाता जोड़ रहे
गुमसुम हताश बैठे लोगों तक
खाकी ने हाथ बढ़ाया
दी मदद हाथ से हाथ मिला
उनको मुकाम तक पहुँचाया
रिश्ते अनजाने बोल रहे
कड़वी सच्चाई खोल रहे
अपनों ने हाथ छुड़ाया
गैरों ने हाथ बढाया
जीवन का पाठ पढ़ाया
रिश्ते अनजाने बोल रहे
मन के मयखाने खोल रहे
जीवन जिसपर कुर्बान किया
उसने हमको अनजान किया.
वाह।
जवाब देंहटाएंThanks sir
जवाब देंहटाएंदिल को छू जाने वाली अत्यंत मार्मिक रचना!
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏
हटाएंअवस्य मैडम
हटाएंआपका बहूत-बहूत आभार
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