दिन रात खौफ में हैं
साँसें जो ढूंढता हूँ
गले मौत मिल रही है
हर पल हमारी सांसें
बेमौत मर रही है
हर ओर पसरी मायूसी
जीवन बड़ा कठिन है
मेरी तलाश मुझको
ले जाएगी कहाँ तक
है कौन सा ये मंजर
कैसी विरानगी है
अपनों से दूर अपने
कैसी ये वानगी है
जो चल रहे थे आगे
पिछे को हो लिए हैं
जो सांस बच गई तो
फिर से तलाश लेंगे
मंजिल जो खो गया है
वो राह फिर मिलेंगे
पर खो गए जो अपने
फिर अब कहाँ मिलेंगे .
बिल्कुल सही लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंबहूत-बहूत आभार
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