मेरी कविता, मेरी अभिव्यक्ति
आँखों में सपने थे ढेरो अरमान थे दिल में कुछ अलग करने की हमने भी ठानी थी सपने बड़े बड़े थे पर साधन बहुत सीमित थे मंज़िल आँखों के सामने थी ...
आदमी है आदमी से आज परेशान
हर आदमी अंदर से है डरा-डरा
कब कौन ऐसा मिल जाये
जो ठग के ले जाये सब कुछ
हर बात पर है धरना का ख़ौफ़
राह रोककर खड़े हो गए
सबकुछ अस्त-व्यस्त कर डाला
ज़िन्दगी को संवार सकते नहीं
बिगाड़ने पर आतुर हर दम रहते है।
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