मेरी कविता, मेरी अभिव्यक्ति
पापा मेरे सपनों का वो प्रतिबिम्ब है जो हमारे हर सपने को पूरा करते है हमारी हर जिज्ञासा को पूरा करते है हमारे लड़खड़ाते कदम को हाथों से संभा...
आदमी है आदमी से आज परेशान
हर आदमी अंदर से है डरा-डरा
कब कौन ऐसा मिल जाये
जो ठग के ले जाये सब कुछ
हर बात पर है धरना का ख़ौफ़
राह रोककर खड़े हो गए
सबकुछ अस्त-व्यस्त कर डाला
ज़िन्दगी को संवार सकते नहीं
बिगाड़ने पर आतुर हर दम रहते है।
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