बड़ा मुश्किलों का एक मकान है
गृह प्रवेश में सब कुछ अच्छा-अच्छा होता है
अगले दिन से ही संघर्ष की शुरुआत हो जाती है
रोज़ दिन गुज़रता है चीक-चीक भरा
चारो तरफ रिश्ते-नातो की होती है भीड़-भाड़
कहने को तो सब अपने लोग है
पर ना जाने क्यों हर रिश्ता
अपना मोल मांगता है
नापता है हर कदम पर तानो-बानो से।
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