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प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों  है कठिन बहुत पीड़ा सहना  इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा  निःशब्द अश्रु धारा बनकर  मन की पीड़ा बह निकली तब  है शब्द कहाँ कु...

सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

शादी शुदा ज़िन्दगी

बड़ा मुश्किलों का एक मकान है 

गृह प्रवेश में सब कुछ अच्छा-अच्छा होता है 

अगले दिन से ही संघर्ष की शुरुआत हो जाती है 

रोज़ दिन गुज़रता है चीक-चीक भरा 

चारो तरफ रिश्ते-नातो की होती है भीड़-भाड़ 

कहने को तो सब अपने लोग है 

पर ना जाने क्यों हर रिश्ता 

अपना मोल मांगता है 

नापता है हर कदम पर तानो-बानो से। 

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