घेरकर मेरी छंटा को
धुंध सा धुंधला किया
सब तेज उसमे खो गया
मैं निरंतर बादलों में
घिरकर खोया सा रहा
मैं कभी रोया नहीं
मैं कभी सोया नहीं
हर कदम हमने बढाई
रौशनी कि ओर ही
मेहनत से डरकर कभी भी
कर्म पथ छोड़ा नहीं
जाऊ जिस भी राह मैं
हर राह पर रोड़ा मिला
हर कोई मुझको आजमाता
हर दिन नए संघर्ष से नाता हमारा
वक़्त भी लेती परीक्षा सब्र का
है कठिन ये वक़्त
मेरे इम्तिहान का...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें