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प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों  है कठिन बहुत पीड़ा सहना  इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा  निःशब्द अश्रु धारा बनकर  मन की पीड़ा बह निकली तब  है शब्द कहाँ कु...

बुधवार, 27 जनवरी 2021

मैं

रात की  काली घटा ने
घेरकर मेरी छंटा को

धुंध सा धुंधला किया 
सब तेज उसमे खो गया 

मैं निरंतर बादलों में 
घिरकर खोया सा रहा 

मैं कभी रोया नहीं 
मैं कभी सोया नहीं 

हर कदम हमने बढाई 
रौशनी कि ओर ही 

मेहनत से डरकर कभी भी 
कर्म पथ छोड़ा नहीं 

जाऊ जिस भी राह मैं 
हर राह पर रोड़ा मिला 

हर कोई मुझको आजमाता 
हर दिन नए संघर्ष से नाता हमारा 

वक़्त भी लेती परीक्षा सब्र का 
है कठिन ये वक़्त 
मेरे इम्तिहान का...
 


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