चुप बैठा रिक्शे पर अपने
मोटरगाड़ी दौड़ रही है
चें - चें पों - पों मची हुई है
कोई पैदल भाग रहा है
तो कोई गाड़ी के पीछे
सबको जल्दी मची हुई है
भगदड़ में सब शामिल हैं
इनके साथ चलाऊँ अपना
रिक्शा कैसे मैं जल्दी
न तो इतनी ताकत मुझमे
ना रिक्शा में मोटर है
अपना रिक्शा सदा प्यार से
सबको मंजिल तक पहुंचाए
पर आज नहीं है चैन किसी को
ना जीने की फुर्सत है
भाग रहे सब धुन में अपने
कोई किसी की सुध नहीं लेता
चारों ओर मचि भगदड़ पर
मन का कोना - कोना सूना।
मर्मस्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंअमृता जी आपने अपने कीमती वक़्त से मेरी कविता के लिए वक़्त निकला उसके लिए आपका बहुत - बहुत आभार
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