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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

रिक्शे वाला

रिक्शे वाला मौन साधकर
चुप बैठा रिक्शे पर अपने


मोटरगाड़ी दौड़ रही है 
चें - चें  पों - पों  मची हुई है 

कोई पैदल भाग रहा है 
तो कोई गाड़ी के पीछे 

सबको जल्दी मची हुई है
भगदड़ में सब शामिल हैं 

इनके साथ चलाऊँ अपना 
रिक्शा कैसे मैं जल्दी 

न तो इतनी ताकत मुझमे 
ना रिक्शा में मोटर है 

अपना रिक्शा सदा प्यार से 
सबको मंजिल तक पहुंचाए 

पर आज नहीं है चैन किसी को 
ना जीने की फुर्सत है 

भाग रहे सब धुन में अपने 
कोई किसी की सुध नहीं लेता 

चारों ओर मचि  भगदड़ पर 
मन का कोना - कोना सूना। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. अमृता जी आपने अपने कीमती वक़्त से मेरी कविता के लिए वक़्त निकला उसके लिए आपका बहुत - बहुत आभार

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