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शनिवार, 14 सितंबर 2019

कुछ सीखो हमसे

उस आज़ादी का क्या करना
जिससे नित दिन खून खराबा हो
हर ओर उदासी छाई हो
हर घर में रोना-धोना हो
हर सड़क पे खून के धब्बे हो
हर गलियाँ सुनी-सुनी हो
माता-बहनों की चीखों से
चित्कार रही हर दिशा जहां
हर सुबह अँधेरी काली हो
फिर रात का आलम क्या कहना
हर हाथ जहां बारूदो से
मुट्ठी भर कर है सोता
सोती भूखी आधी जनता
खाना-पानी सब है टंटा
हर ओर बिखरती लाशों में
हैं अपना कौन पराया कौन
जीवन है जंग जहाँ
सपना बन्दुक की गोली है
एटम बम पर बैठे रहते
उस देश के नेता हर दम है
कुछ सिख सको तो सिख लो तुम
मेरे बलिदानी नेता से
तुम जपते हो दिन-रात जिसे
सीखो कुछ उसके जीवन से
वह जीता है बस जीता है
हर पल बस देश को जीता है
खुशियाँ इस देश में कैसे हो
हर पल वह कोशिश करता हैं.

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