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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

रविवार, 22 सितंबर 2019

मातृभूमि

कण-कण में भारत बसता हैं
हर मन में भारत बसता है
भारत माता की शान यही
हर दिल में भारत बसता है

कण-कण में भारत बसता हैं
है भारत की पहचान यही
हर घर में भारत बसता है
है हरित-क्रांति का देश मेरा
पग-पग में खुशियाँ मिलती है

कण-कण में भारत बसता हैं
हैं नोक-झोक, है हँसी-ठिठोली
जब देश की बात है आती
हम हो जाते सब एक

कण-कण में भारत बसता हैं
सर मेरा झुके नहीं
हाथ पहले कभी उठे नहीं
पर हमको आँख दिखने वाले
सलामत नहीं बच पाओगे
पलट के जाने के लिए.

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