जीवन पथ पर हैं काटें हज़ार
अजीब सी उलझन है
सुलझी हुई ज़िन्दगी
बिखर कर रह जाती है
सब उसे नासमझ और बुद्धू कहते है
हर उलझा हुआ आदमी
कामयाबी की मुकाम पाता है
चोर और बदमाश समाज में सम्मान पाते है
हर ओर उनकी वाह-वाह होती है
आओ-भगत भी लोग खूब उनकी करते है
माँ लक्ष्मी की कृपा भी उन्ही पर बरसती है
देवताओं के आँगन में भोग उनका ही बड़ा होता है
चढ़ावा जितना बड़ा होता है
सम्मान भी उतना ही मिलता है
खुशियों की दस्तक भी
उनके दरवाज़े ही होती होती है
क्योंकि आज कल हर चीज़
पैसे के बल पर मिलती है
माँ भी उसी पुत्र को आँचल की छावं देती है
जिसके पॉकेट में पैसे की गद्दी होती है
वह पुत्र किस काम का जो खाली हाथ आता है
माँ भी कहती है
समाज में मेरी क़द्र कम हो जाती है
तू तो कभी-कभार ही आया कर
तू पैसा तो कमा पाया नहीं और क्या कर पायेगा
तेरी ईमानदारी भी किस काम की
न तो हमें खुशियाँ दे सकती है
और न ही सम्मान
तेरा होना भी न होने के बराबर है
जब माँ ही बेगानों-सा व्यवहार करती है
तो गैरों से क्या उम्मीद करूँ
गैरों के ठोकर से तो अब दर्द भी नहीं होता
अपनों ने ही ज़ख्म इतने दिए है
अब तो ज़ख्म से भी प्यार होने लगा है
अब तो हर वक्त ये डर लगता है
की अगला नंबर किस रिश्ते का है
कौन-सा रिश्ता अपना फरमान सुनाएगा
तू है बेगाना अब मेरे लिए
मत आना मेरे द्वार
अब तेरा मेरा रिश्ता ही क्या है.....?
अजीब सी उलझन है
सुलझी हुई ज़िन्दगी
बिखर कर रह जाती है
सब उसे नासमझ और बुद्धू कहते है
हर उलझा हुआ आदमी
कामयाबी की मुकाम पाता है
चोर और बदमाश समाज में सम्मान पाते है
हर ओर उनकी वाह-वाह होती है
आओ-भगत भी लोग खूब उनकी करते है
माँ लक्ष्मी की कृपा भी उन्ही पर बरसती है
देवताओं के आँगन में भोग उनका ही बड़ा होता है
चढ़ावा जितना बड़ा होता है
सम्मान भी उतना ही मिलता है
खुशियों की दस्तक भी
उनके दरवाज़े ही होती होती है
क्योंकि आज कल हर चीज़
पैसे के बल पर मिलती है
माँ भी उसी पुत्र को आँचल की छावं देती है
जिसके पॉकेट में पैसे की गद्दी होती है
वह पुत्र किस काम का जो खाली हाथ आता है
माँ भी कहती है
समाज में मेरी क़द्र कम हो जाती है
तू तो कभी-कभार ही आया कर
तू पैसा तो कमा पाया नहीं और क्या कर पायेगा
तेरी ईमानदारी भी किस काम की
न तो हमें खुशियाँ दे सकती है
और न ही सम्मान
तेरा होना भी न होने के बराबर है
जब माँ ही बेगानों-सा व्यवहार करती है
तो गैरों से क्या उम्मीद करूँ
गैरों के ठोकर से तो अब दर्द भी नहीं होता
अपनों ने ही ज़ख्म इतने दिए है
अब तो ज़ख्म से भी प्यार होने लगा है
अब तो हर वक्त ये डर लगता है
की अगला नंबर किस रिश्ते का है
कौन-सा रिश्ता अपना फरमान सुनाएगा
तू है बेगाना अब मेरे लिए
मत आना मेरे द्वार
अब तेरा मेरा रिश्ता ही क्या है.....?
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंthanks
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
thanks
हटाएंमर्म स्पर्शी सृजन! एक और सच समाज के नये दौर का ।
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना!👍
जवाब देंहटाएंSubha ji Thanks
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