एक अबूझ पहेली हो तुम
जितना समझने की कोशिश करू
उलझती उतनी ही जाऊँ
उलझन हर बार नयी आती है
बार-बार मन को मेरे तड़पाती है
ज़िन्दगी हर बार मुझे समझाती है
रख सब्र इम्तिहान है तेरा
मुकाम को मुकम्मल करने का
वक्त अभी आया नहीं
पहेली उलझती है उलझ जाने दो
सुलझ जाएगी एक दिन यह भी पहेली
वो ज़िन्दगी ही क्या जिसमे उलझन न हो।
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