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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

पहेली

एक अबूझ पहेली हो तुम 

जितना समझने की कोशिश करू 

उलझती उतनी ही जाऊँ 

उलझन हर बार नयी आती है 

बार-बार मन को मेरे तड़पाती है 

ज़िन्दगी हर बार मुझे समझाती है 

रख सब्र इम्तिहान है तेरा 

मुकाम को मुकम्मल करने का 

वक्त अभी आया नहीं 

पहेली उलझती है उलझ जाने दो 

सुलझ जाएगी एक दिन यह भी पहेली 

वो ज़िन्दगी ही क्या जिसमे उलझन न हो। 

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