मेरी कविता, मेरी अभिव्यक्ति
हे प्रियतम तुम रूठी क्यों है कठिन बहुत पीड़ा सहना इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा निःशब्द अश्रु धारा बनकर मन की पीड़ा बह निकली तब है शब्द कहाँ कु...
कड़ाके की ठंड थी
आसमान धुआँ-धुआँ सा था
दिन में भी अँधेरा था
आग के इर्द-गिर्द सबका लगा डेरा था
मूंगफली के दाने थे
नानी की चटपटी कहानी थी
वो दिन भी कितने सुहाने थे
न घर चलाने का कोई बोझ था
सब कुछ सुहाना-सुहाना सा था।
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