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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

धुंध

कड़ाके की ठंड थी 

आसमान धुआँ-धुआँ सा था 

दिन में भी अँधेरा था 

आग के इर्द-गिर्द सबका लगा डेरा था 

मूंगफली के दाने थे 

नानी की चटपटी कहानी थी 

वो दिन भी कितने सुहाने थे 

न घर चलाने का कोई बोझ था 

सब कुछ सुहाना-सुहाना सा था। 

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