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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

धुंध

कड़ाके की ठंड थी 

आसमान धुआँ-धुआँ सा था 

दिन में भी अँधेरा था 

आग के इर्द-गिर्द सबका लगा डेरा था 

मूंगफली के दाने थे 

नानी की चटपटी कहानी थी 

वो दिन भी कितने सुहाने थे 

न घर चलाने का कोई बोझ था 

सब कुछ सुहाना-सुहाना सा था। 

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