मेरी कविता, मेरी अभिव्यक्ति
आँखों में सपने थे ढेरो अरमान थे दिल में कुछ अलग करने की हमने भी ठानी थी सपने बड़े बड़े थे पर साधन बहुत सीमित थे मंज़िल आँखों के सामने थी ...
रोज़ सपने में आओ
शगुन दे के जाओ
साथ खुशियाँ मनाओ
हर्ष में गीत गाओ
लहरों पे झूम जाओ
कभी रूठ जाओ कभी फिर मनाओ
मेरे स्वप्न में रोज़ ऐसे ही आओ
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