मेरी कविता, मेरी अभिव्यक्ति
हमको बुलाये ए हरियाली ए पहाड़ के आँचल हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल कभी दूर तो कभी पास ए करते रहे ठिठोली भोर - सांझ ये आते जाते होठों...
रोज़ सपने में आओ
शगुन दे के जाओ
साथ खुशियाँ मनाओ
हर्ष में गीत गाओ
लहरों पे झूम जाओ
कभी रूठ जाओ कभी फिर मनाओ
मेरे स्वप्न में रोज़ ऐसे ही आओ
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