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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

सपने

आँखों में सपने थे 

ढेरो अरमान थे दिल में 

कुछ अलग करने की 

हमने भी ठानी थी 

सपने बड़े बड़े थे 

पर साधन बहुत सीमित थे 

मंज़िल आँखों के सामने थी 

पर रास्ता बड़ा कठिन था 

हमारे अरमानो का 

कोई सहयोगी न था 

हर ओर विरोध के ही स्वर थे 

किसी को भरोसा न था हम पर 

परिस्थितियाँ भी हमसे 

तूफ़ान की तरह टकराते थे 

ग़म का तो ऐसा था 

जैसे हमसे प्यार ही हो गया हो 

चुनातियाँ भरपूर थी 

वक्त हाथों से फिसलता जा रहा था 

पर हिम्मत अभी भी बाकी थी 

धैर्य टूट सा रहा था 

लेकिन मुझे फिर भी 

किसी करिश्मे की उम्मीद थी 

और ऐसा ही हुआ 

जब सबकुछ चारो तरफ 

टूट सा रहा था 

मेरे सपने आकार ले रहे थे 

मैं ज़िन्दगी में वापसी कर रही थी 

सबकुछ पटरी पर आ गया 

हाँ कठिनाइयाँ तो ज़रूर आयी पर 

सफलता ने हमारे कदम चूमे 

और मेरा वो सपना जो 

मैंने बचपन में देखा था 

धीरे - धीरे पूरा हो रहा है। 

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