यह ब्लॉग खोजें

Translate

विशिष्ट पोस्ट

सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

ये कैसा देश

छोटी साज़िश मोटी साज़िश
साज़िश के ऊपर भी साज़िश

साज़िश के बदले भी साजिश 
साज़िश के पहले भी साजिश 

साजिश करना देश तोड़ना 
मुमकिन है तेरा अरमान 

लेकिन ये अरमान तुम्हारा 
कभी न पूरा हो पाएगा 

कौन है अपना कौन पराया 
जनता सबकुछ जान चुकी है 

कौन है सच्चा कौन है झूठा 
सबकुछ जनता जान चुकी है 

गलत - सही  में करना फर्क 
वक़्त ने हमको सब सिखलाया 

हर झूठे चेहरे से परदा 
वक़्त ने अपने-आप  उड़ाया 

भारत माँ के साथ कौन है 
कौन खड़ा है राह रोककर 

किसने माँ की खातिर अपनी 
जान दावं पे लगा दिया 

साज़िश का बाजार गर्म है 
अफ़रा -तफ़री मची हुई है 

कोई डाली पर बैठ काटता 
कोई पौधे सींच रहा है 

अपना है यह देश अनोखा 

2 टिप्‍पणियां: