रिया एक ऐसी लड़की का नाम हैं
जिसका जन्म एक साधारण परिवार में कई भाई-बहनों के बीच होता हैं लेकिन एक सामंतवादी
परिवार होने के बावजूद रिया को अपने पिता का भरपूर प्यार और उनका विश्वास मिलता
हैं. आस-पास के रुद्धिवादी माहौल के बावजूद रिया के पिता को अपनी बेटी के ऊपर पूरा
भरोसा होता हैं और हमेशा अपनी बेटी का हौसला बढ़ाते हैं. रिया लड़की होने के बावजूद
लड़कियों की तरह का सपना देखना बिल्कुल पसंद नहीं करती हैं. उसे अपनी सहेलियों की
तरह शादी, पति या पैसा का सपना देखना कभी नहीं भाता हैं. उसे बस धुन-सी होती हैं
कि उसे कुछ अलग करना हैं, लेकिन क्या करना हैं ये उसे भी नहीं पता.
वह हमेशा एक मिसाल कायम करने की कोशिश करती हैं, परिवार से लेकर
स्कूल-कॉलेज, और अपने मित्रो के बीच सभी उसे बहुत पसंद करते है, सब लोग उसे प्यार
करते हैं. लेकिन इसी बीच कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें रिया की अच्छाई या उसकी
तारीफ़ कभी अच्छी नहीं लगती इन सबसे बेख़बर रिया अपनी ज़िन्दगी में मशगूल, अपनी
ज़िन्दगी के 20 साल पूरे कर लेती हैं.
यहाँ से उसकी ज़िन्दगी में परिवर्तन आता हैं और उसकी शादी हो जाती
हैं. अब अचानक उसके सामने कई रिश्ते, कई जिम्मेवारी आ जाती हैं जिसके विषय में
रिया ने तो कभी सोचा ही नहीं था लेकिन रिया भी ठहरी जिद्द की पक्की और अपने पिता
की लाडली बेटी जो अपने पिता का सम्मान बढ़ा तो सकती हैं लेकिन उसकी वजह से उसके
पिता का सम्मान कम हो ऐसा नहीं हो सकता हैं.
रिया अपनी हर जिम्मेवारी पूरी ईमानदारी से निभाती हैं. रिया अपने
व्यवहार से अपने ससुराल वालो का दिल जितने में कामयाब होती हैं, लेकिन रिया को
क्या पता था कि नियति ने तो उसके लिए कुछ और ही सोच रखा हैं. रिया की ज़िन्दगी में
खुशियाँ इतनी आसानी से मिल जाये तो कुछ अलग वाली बात कहाँ से होगी, उसकी ज़िन्दगी
तो अपने आप में निराली थी, अनोखी थी और लीक से हट कर थी.
एक दिन सड़क दुर्घटना में उसके पति की मृत्यु हो जाती हैं और उसी दिन
से रिया की ज़िन्दगी में संघर्षो का दौर शुरू हो जाता हैं. रिया ने अपनी खुशियों को
जी भरकर जिया भी नहीं था कि इतनी बड़ी विपत्ति उसके सामने आकर खड़ी हो जाती हैं और
इस विपत्ति के लिए उसके परिवार वाले उसे ही ज़िम्मेवार मानते हैं, इस घटना के बाद सबने
उससे ऐसा मुह फेरा जैसे उनका रिया से कोई रिश्ता ही नहीं था. ख़ैर रिया भी कब हार
मानने वाली थी. रिया ने अपने पति के बिज़नेस को अपना संबल और अपना उद्देश्य दोनों
ही बनाकर आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी. रिया अपना कार्य लगन और मेहनत से करती रही.
कई साल की कठोर मेहनत के बाद रिया ने वह सब करने में कामयाबी हासिल की जैसा वो
चाहती थी. उसे अगर किसी बात का मलाल था तो सिर्फ इतना कि काश उसकी कामयाबी में उसके
पति और परिवार दोनों साथ होते लेकिन नियति के लिखे को कौन टाल सकता हैं?.
रिया ने समाज के सामने एक अच्छी मिसाल पेश की थी, साथ ही अपने बच्चो
को सही दिशा देने में पूरी तरह कामयाब रही. रिया का मानना था कि वो यह सब कर पायी
क्योंकि उसे अपने और अपने प्रभु पर पूरा विश्वास था. जब हमारी नियत नेक होती हैं
और मेहनत भरपूर तो कामयाबी ज़रूर मिलती हैं. अगर रिया की तरह हर बेटी ठान ले कि
हमें हर हाल में कामयाब होना हैं तो हमारे समाज की तस्वीर अवश्य बदलेगी. बेटियाँ
समाज का गौरव होती है न की बोझ.....
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