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मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

सज़ा

एक दिन की बात हैं, रात के भोजन के बाद मैं अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ी थी. बाहर चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था. ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी. सड़कें सुनसान होने लगी थी. बिजली के खम्भे पर लगी बड़ी-बड़ी लाइटें इस तरह रौशनी बिखेर रहे थे मानो चांदनी रात ने सड़को पर सफ़ेद चादर बिछा दी हो. सब कुछ कितना अच्छा लग रहा था कि तभी सन्नाटे को चीरती हुई एक महिला तेजी से सड़क पर भागती हुई आई और अपने गोद से ऐसे लगा मानो कोई कपड़े की गठरी ज़मीन पर रख रही हो, सड़क के किनारे रख कर तेज़ी से भागती हुई अँधेरे में विलीन हो गई. जबतक मैं यह समझ पाती कि आखिर माजरा क्या हैं वह तो अँधेरे में ग़ायब हो चुकी थी. कुछ ही पल में वहां कुछ कुत्ते आकर तेज़-तेज़ भौंकने लगे, मैं समझ नहीं पा रही थी कि आखिर वहां हो क्या रहा हैं. मैं नीचे जाऊं या नहीं, मेरा मन आशंकित होने लगा. कई तरह के बुरे-बुरे विचार मन में आने लगे. मैं अनमने ढंग से सड़क से अपनी नज़र हटा कर पीछे की ओर चल पड़ी तभी पी०सी०आर वैन की आवाज़ सुनाई दी. पी०सी०आर वैन वहां आकर रुकी, कुछ पुलिसवाले वैन से उतरे और उस गठरी को चारों ओर से घेर लिया. तभी मेरी नज़र एक पुलिसवाले के हाथ पर गई और मेरी नज़र वही की वही ठिठक गई, मेरे हाथ-पैर ऐसे कांपने लगे जैसे उस पुलिसवाले ने मेरी ही कोई चोरी पकड़ी है लेकिन मेरी यह दशा तो उस पुलिसवाले के हाथ में उस नवजात बच्चे को देखकर हुई थी. उसकी टुकड़-टुकड़ ताकती गोल-मटोल सी आँखें पुलिसवाले को ऐसे देख रही थी मानो कुछ कहने को बेचैन हो. यह सोच-सोचकर मेरे हाथ-पैर ठन्डे हो रहे थे कि अब उस बच्चे का क्या होगा? कौन उसे अपनाएगा? आखिर उस बच्चे का कुसूर क्या था कि उसकी माँ ने उसे इतनी कठोर सज़ा दी? क्या उसकी माँ को तनिक भी ख़ुशी नहीं हुई होगी उसके जन्म पर? क्या वह माँ नहीं बनना चाहती थी? या फिर किसी के द्वारा छली गई थी? जो भी हो लेकिन वह तो अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गई पर अब उस बच्चे का क्या जिसे वह मरने के लिए छोड़ गई हैं? यह सज़ा तो उसे उस जानवर को देनी चाहिए थी जिसने उसे यह सब करने को मजबूर किया, फिर उसने यह सज़ा उस बच्चे को क्यों दी. यह सज़ा तो उसे अपने आपको देनी चाहिए थी. बगैर सोचे समझे उसने यह कदम उठाया. तब उसने क्यों नहीं सोचा कि इसका परिणाम क्या होगा और जो वो कर रही हैं वो सही नहीं हैं. यह सोचते-सोचते मेरी आँख कब लग गई मुझे पता ही नहीं चला.
               जब मेरी आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी. फिर सब कुछ वैसा ही था, जैसा पहले हुआ करता था. मेरा मन थोड़ा भारी-भारी सा लग रहा था. मैं समझ नही पा रही थी कि रात जो घटा था वो मेरा सपना था या सच, मैं बार-बार अपने मन को तसल्ली दे रही थी कि काश वो मेरा सपना ही हो पर तभी मेरे नौकर कि आवाज़ आई , “मालकिन आपसे मिलने इंस्पेक्टर साहब आए है.” इतना सुनते ही एक बार फिर मेरे आँखों के सामने वो पूरी घटना चलचित्र की तरह घूम गई और मैं फिर अजीब-सी उलझन में पर गई पर फिर नौकर की आवाज़ सुन मेरी तन्द्रा भंग हुई. मैं अनमने ढंग से उठी और नीचे की ओर चल दी. जब मैं नीचे पहुँची तो देखा ड्राइंगरूम में दो पुलिसवाले बैठे हुए थे. मुझे देखते ही वह उठ खड़े हुए और बोल पड़े, “मैडम हमे आपसे कुछ जानकारी लेनी थी इसलिए आपको परेशान करने चले आए.”
“अरे नही कोई बात नही आप बैठिये और बताइए कि कैसे आना हुआ.” पुलिसवाले ने कहा, “मैडम आपके घर के पास रात एक बचा पड़ा मिला था उसी के संबंध में कुछ जानना चाहते है.”
“हाँ, मुझे पता है.”
“आपको पता है?”
“हाँ, क्योंकि जिस वक्त आपकी गाड़ी मेरे घर के नीचे रुकी थी तो सायरन की आवाज़ सुन कर मेरी भी नींद खुल गई थी. मैंने रात को सबकुछ देखा था. अब वो बच्चा कैसा है? कुछ पता चला उसके बारे में?”
“नही, हमलोग  कोशीश कर रहे हैं, अख़बार में भी इश्तहार दे दिया हैं. ताकि कहीं से कोई खबर मिल जाए. हमने अभी अनाथ आश्रम वालों को बुलाकर बच्चा उनको सौप दिया हैं. बच्चा अभी बिल्कुल स्वस्थ हैं. मैडम आपने उस महिला का चेहरा थोड़ा बहुत तो देखा होगा. नहीं उपर से अँधेरे में मुझे कुछ ठीक से नहीं दिखा. ठीक हैं अगर आपको कुछ भी याद आता हैं तो आप जरूर बतायेंगी. हमें उस महिला को खोजने में आसानी हो जाएगी. बिल्कुल सर. 
उसके बाद पूलिस वाले तो चले गए लेकिन मेरी उलझन और बढ़ गई. इसी सोंच में मेरा पूरा दिन निकल गया. अगले दिन फिर पुलिश वाले हमारे घर आ गए. सर अब क्या हुआ मम उसी केस के सिलसिले में आयें हैं. कुछ पता चला. जी कुछ खास नहीं लेकिन बच्चे के लिए एक अच्छी  हैं खबर ज़रूर है”
“क्या??”
“अखबार में बच्चे के विषय में पढ़कर किसी व्यापारी दंपति का फ़ोन हमारे पास आया था कि हम उस बच्चे को गोद लेना चाहते है.”
“यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है.”
“हाँ, अगर उस बच्चे के विषय में एक-दो दिन में कुछ नही पता चला तो हम लोग उसे उस दंपति को दे देंगे ताकि उसकी परवरिश सही ढंग से हो सके.”
यह सब सुन मेरे मन से तो जैसे एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया और मैं  पहले की तरह ही तरोताज़ा महसूस करने लगी. काश इस वेदना को उसकी माँ भी समझ पाती.

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