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पापा

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शनिवार, 1 अप्रैल 2017

माटी

हैं कसम मुझे इस माटी की
मैं इसका कर्ज चुकाउंगी
जीवन इस माटी से है बना
एक दिन माटी में मिल जाउंगी
पर इस माटी के गौरव को
एक मंजिल दे कर जाउंगी 
कुछ इस माटी को देकर के
कुछ इस माटी से लेकर के
सब माटी में मिल जाता हैं
पर इस माटी की खुशबू से
आनंद सभी को आता हैं
कुछ को इसका अनुमान लगा
कुछ अनजाने ही चले गए
कुछ ने माटी का मोल समझ
उसके कीमत को पहचाना
कुछ ने अपनी खातिर इसको
हर दम बदनाम किया करते
कभी जाति तो कभी मजहब के
छोले में दर्द दिया करते
जिसने इसकी कीमत जानी
इतिहास में नाम वो दर्ज हुआ
हैं गर्व उसे इस माटी पर
जिसने हैं उसको जन्म दिया
इसमें पलकर वह बड़ा हुआ
इसका गौरव बन पाया वह
हैं कसम मुझे इस माटी की

मैं इसका क़र्ज़ चुकाउंगी!!

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