रोज़ सपने में आओ
शगुन दे के जाओ
साथ खुशियाँ मनाओ
हर्ष में गीत गाओ
लहरों पे झूम जाओ
कभी रूठ जाओ कभी फिर मनाओ
मेरे स्वप्न में रोज़ ऐसे ही आओ
हे प्रियतम तुम रूठी क्यों है कठिन बहुत पीड़ा सहना इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा निःशब्द अश्रु धारा बनकर मन की पीड़ा बह निकली तब है शब्द कहाँ कु...
रोज़ सपने में आओ
शगुन दे के जाओ
साथ खुशियाँ मनाओ
हर्ष में गीत गाओ
लहरों पे झूम जाओ
कभी रूठ जाओ कभी फिर मनाओ
मेरे स्वप्न में रोज़ ऐसे ही आओ
माँ तुम्हारी याद मेरे दिल में बसती है
तू नज़र के सामने मुझे रोज़ दिखती है
ख्वाब में भी माँ मुझे दिल से लगाती है
प्रेम का अपना शगुन मुझे दे के जाती है
माँ मेरी मुझको तेरी बड़ी याद आती है
हर कठिन रस्ते में माँ की याद आती है
क्या करू कैसे तुम्हे दिल से लगाऊं माँ
माँ तुम क्यों दूर हो, मेरे पास आओ माँ।
आज के इस ज़माने में
हर आदमी का
अपना एक मकान होना चाहिए
मुक़ाम मिले ना मिले
मकान मिलना चाहिए
ज़िन्दगी दर बदर की ठोकरों से
गुलज़ार है
दिन में ख़ामोशी तो
रात में आँसुओ की दूकान है
हर इंसान के दिल में
चल रहा आज तूफ़ान है
अकेली ज़िन्दगी कटती नहीं
दिल के कोने में बस्ता एक शमशान है
मकान से ही इंसान की पहचान है
वर्ना तो हर आदमी यहाँ
एक किरायदार है।
कड़ाके की ठंड थी
आसमान धुआँ-धुआँ सा था
दिन में भी अँधेरा था
आग के इर्द-गिर्द सबका लगा डेरा था
मूंगफली के दाने थे
नानी की चटपटी कहानी थी
वो दिन भी कितने सुहाने थे
न घर चलाने का कोई बोझ था
सब कुछ सुहाना-सुहाना सा था।
अयोध्या धाम आएंगे
प्रभु श्री राम आएंगे
मगन हम गीत गाएंगे
गली-आँगन सजाएंगे
मेरे प्रभु राम आएंगे
उन्हें क्या-क्या खिलाएंगे
ख़ुशी हमको प्रभु इतनी
कि जमीं पर पैर टिक न पाएंगे
हम उस दिन खूब नाचेंगे
प्रभु के आगमन पर हम
अपना घर सजाएंगे
दिवाली फिर मनाएंगे
ख़ुशी का गीत गाएंगे
मेरे प्रभु राम आएँगे
अयोध्या धाम आएंगे
हमको भी बुलाएंगे
नयन फिर भीग जाएंगे
मेरे प्रभु राम आएँगे।
एक अबूझ पहेली हो तुम
जितना समझने की कोशिश करू
उलझती उतनी ही जाऊँ
उलझन हर बार नयी आती है
बार-बार मन को मेरे तड़पाती है
ज़िन्दगी हर बार मुझे समझाती है
रख सब्र इम्तिहान है तेरा
मुकाम को मुकम्मल करने का
वक्त अभी आया नहीं
पहेली उलझती है उलझ जाने दो
सुलझ जाएगी एक दिन यह भी पहेली
वो ज़िन्दगी ही क्या जिसमे उलझन न हो।
माँ मेरी सपनो में मिली
माँ ने दर्शन दिए मुझे
माँ ने ख़ुशी का मंत्र बताया
मुझको जीना माँ ने सिखाया
भले बुरे का भेद बताया
प्यार ख़ुशी का मोल सिखाया
मुश्किल वक्त का सब्र सिखाया
खोना-पाना हँसना-रोना
माँ ने हर वो चीज़ सिखाई
जीवन मेरा धन्य बनाया
माँ का मर्म जो समझ न पाया
जीवन जीना सीख न पाया।
ऐ जो गम है मेरे हमसफ़र है मेरे
खुशियाँ छूट जाये पर ऐ छूटे भूल से ना
जिनसे थी उम्मीद मुझे
उनसे ही सबसे ना उम्मीद हो गए
मेरे गम ने जो मुझे आईना दिखाया
हम खुद से ही बेनकाब हो गए
सच साबित न कर सके हम कभी
झूठ के आगे ही बेज़ुबान जितना मुझे
आज अपनी आँसुओं से दूर उतने हो गए।
मंज़िल-मंज़िल करते हैं हम
मंज़िल का कोई भान नहीं है
कोई उसका रंग नहीं है
कोई उसका नाम नहीं
नाँव लहर से टकरा कर
दूर किनारे जा रूकती है
फिर भी नाविक लेकर उसको
पुनः लौट है जाता
बार-बार गिरकर भी उठना
ठोकर खा-खा कर भी चलना
नए-नए आयाम को गढ़ना
रोज़ नए अनुभव से मिलना
रोज़ नयी मुश्किल से लड़ना
यही है मंज़िल यही राह है
दोनों संग-संग चलते रहते
जीवन का बस एक मंत्र है
हरदम आगे बढ़ते रहना।
बढे चलो बढे चलो
दूर नहीं है मंज़िल
कुछ ख़ास नहीं है मुश्किल
राह पथरीले ज़रूर है
पर इतनी भी मुश्किल नहीं
सफर आसान हो जायेगा
जब चेहरे पर मुस्कान आएगा
अपने में हौसला रखना सीख लो
बढे चलो रास्ता मुश्किल ही सही
मंज़िल तक जाती तो है
सपनो में रंग भरना है तो
संभलकर चलना ही पड़ेगा
मुश्किलें आसान हो जाती है
जब इरादे पक्के हो।