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शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

मोहब्बत

जबसे तुमको देखा
नयन चार होने लगे
हम तो अकेले थे
अब तो अकेलेपन से भी प्यार होने लगा
रात भाती नहीं थी मुझको
अब तो उनसे भी प्यार होने लगा
दिन कटे नहीं कटता था
अब तो पलकों में गुजरने लगा
छावं की चाहत होती थी हमेशा
अब तो धुप भी अच्छी लगने लगी
मौसम दिल का क्या बदला
हवा का रुख भी बदलने लगा
चाँद आसमा पर ही अच्छी लगती थी
अब तो जमी पर भी उतारने लगा
रात के सपने डराते थे मुझे
अब तो सपने में भी मजा आने लगा
छुपा लो दिल के किसी कोने में ऐसे
सीप में मोती रम जाती हो जैसे
मेरी चाहत है तेरे दिल की धड़कन बन जाऊं
मैं रहूँ या न रहूँ
पर तेरे दिल की धड़कन में
जिंदा हमेशा रहूँ.

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