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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

गुरुवार, 6 जुलाई 2017

खुशियाँ

ख़ुशी अंतरात्मा की आवाज है
ख़ुशी उसकी पहचान है
ख़ुशी बाजार में बिकती नहीं
वरना इसपर भी पैसेवालों
का ही हक़ होता
बड़ी-बड़ी दुकानों में
इसकी बोली लगती
खुशियाँ बाँटने से बढती है
छोटी सी है जिन्दगी
इसे खुशियों से गुजार दो
क्यों होड़ में लगे हो
ख़ुशी को अपने भीतर ही तलाशो
जागो मेरे मशीनी भाइयो
जिन्दगी जीने के लिए है
पैसे के बाजार में खोने के लिए नहीं
पैसे तो हम फिर भी यहीं छोड़ जायेंगे
जाएँगी साथ अपनी प्यारी सी हंसी
मनालो खुशियों का त्यौहार
गम को विदा कर देते हैं

ख़ुशी का स्वागत दिल खोलकर करतेहैं!!    

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