वह कहता रहा
मै सुनती रही
ख्वाब मैं अक्सर
उसी की बुनती रही
हर रोज उसे देखने को
दिल भोड़ से ही तड़प उठता
जब उससे नजरे मिलती
मन शांत होता और
दिल की प्यास बुझती
मैं कितनी नासमझ थी
ख्वाब बुनती रही
वक्त बीतता गया
एक दिन अपने ही हाथो
उसे अपने आप से जुदा किया
खुद से ही उसे गैर बता डाला
उसके दिल को
झकझोड़ कर तोड़डाला
क्यूंकि मेरी मुस्किल
कुछ अलग थी
मै अपने फर्ज से बंधी थी
और क्या करती
अपना प्यार
दिल में ही छुपा लिया
बड़ी मुस्किल से उसको
मैंने गैर तो बता दिया
अपने एहसास को
दिल में ही सूला दिया
रंग जो प्यार का चढ़ा था
उसको फर्ज से नहला दिया
साबुन से साफ करके
सब कुछ मिटा दिया
पर दिल के एहसास को
मै मिटा न पाई
आज भी उस दिन को याद कर
मन उदास होता है
कास तुम मेरे संग होते
अपना भी प्यार संग-संग होता
जीवन में कुछ उमंग होता
कुछतो तरंग होता
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