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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

रविवार, 9 जुलाई 2017

वीर सपूत

तुझे कोटि-कोटि है नमन
तू वीर है सपूत
मातृभूमि तेरा फर्ज है
रुके न तू झुके न तू
यही मेरी पुकार है
रुके न तू थके न तू
सदा चले आगे बढ़े
तू वीर है प्रहार कर
तू अपना पहला वार कर
हिरण सी तुझमे फुर्ती हो
हाथियों का बल हो
भुजा-भुजा फड़क रही
हिला गगन डरा पवन
तू ऐसी ही चीत्कार कर
हिन्द की पुकार है
तू सिंह सा दहाड़ कर
तू लक्ष्य अपना भरद कर
दुनिया को दिखा दे!! 

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