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प्रियतम

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सोमवार, 24 जुलाई 2017

ख्व़ाब

वह कहता रहा
मैं सुनती रही
ख्वाब मैं अक्सर
उसी की बुनती रही
ख्वाब में जीती रही 
मन की तड़प से बेचैन मै  
जब उससे नज़रे मिलती
मन शांत होता
ओर दिल की प्यास बुझती
मैं कितनी नासमझ थी
ख्वाब मैं बुनती रही
वक़्त बीतता गया
एक दिन अपने हाथों ही
उससे अपने आपको जुदा किया
खुद से ही गैर बता डाला
उसके दिल को झकझोर कर तोड़  डाला
क्यूंकि मेरी मुश्किल कुछ अलग थी
मैं अपने फ़र्ज़ से बंधी थी
अपना प्यार दिल में ही छुपा लिया
बड़ी ही मुश्किल से उसको मैंने
गैर तो बता दिया
अपने एहसास को
अपने दिल में ही सुला दिया
रंग जो प्यार का चढ़ा से
उसको नहला दिया
साबुन से साफ़ करके
दाग भी मिटा दिया
पर किसे पता था
आज भी मेरे दिल में
टिस सी उठती है
काश वो मेरे संग होता
मैं उसके संग होती

दोनों मिल जीवन में रंग भरते

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