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रविवार, 2 जुलाई 2017

वो पल

स्वर्णिम पल था वो जीवन का
दीपक जलता रहा रात भर
जोहते हम राह तेरा
राह पे पलके बिछा दी
फूलो से सपने सजाए
कुछ पलो को चूनकर के
उनका गुलदस्ता बनाया

स्वर्णिम पल था वो जीवन का
जब आपसे नज़रे मिली थी
आखों ही आखों में हम ने
बात दिल की छेर दी थी

स्वर्णिम पल था वो जीवन का
हम दोनों के बगीया में
दो-दो नन्हे फूल खीले
जीवन के हर लय को हमने
एक सूत्र में बांध दिये

स्वर्णिम पल था वो जीवन का
जीवन जब एक राह बनी
हँसी-ख़ुशी हमने राहों में
प्रेम फूल अर्पण कर दी

जीवन क्रम चलता रहता है
स्वर्णिम पल आता-जाता है
हर नए पूराने अनूभव से

कुछ सीख हमे दे जाता है!

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