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शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

चंद लम्हे

चंद लम्हों की ज़रूरत हैं 
खोई खुशियाँ ये हकीकत हैं 
चन्द्र साँसों की गनीमत हैं 
सांसे सस्ती ही हुई जाती हैं 
पैसा आज भी आसमां पे छाया हैं 
ख्वाहिशे दूर हुई हमसे 
अपने गैरों में हुए तब्दील अब तो 
गैरों से राहत की दुआं करते हैं
चंद लम्हों की ज़रूरत हैं 
हम तो खुशियों को ढूंढा करते हैं 
राते सुनसान सड़क दिखता हैं 
दिल में सब खोया हुआ दिखता हैं 
राहें अनजान बनके कटती हैं 
ज़िन्दगी तूफ़ान में फसी हैं 
नौकां मझदार में अटकी हैं 
चंद लम्हों की ज़रूरत हैं 
चाहे चंद लम्हे ही मिले 
पर वो खुबसूरत हो!!!!

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