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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शनिवार, 1 जुलाई 2017

डाकिया

रोज़ संदेशा लेकर आता
डाक सभी के घर पहुंचता
खाकी वर्दी पहन के आता
सर पर टोपी हाथ में चिठ्ठी
साईकल की घंटी के घन-घन
से अपनी पहचान कराता
सबसे करता राम-राम
कुशल छेम सबकी वो लेता
कभी ख़ुशी कभी ग़म लेके आता
संदेशों से उसका नाता
संदेशों का जीवन दाता
डाकिये की पहचान निराली
शहर हो या गाँव
हर कोई उसे जानता
हर घर में उसकी जगह होती
हर ख़ुशी में याद आता
ग़म में भी हमको रुलाता
डाकिया डाक लेकर आता
इंतज़ार हैं हमें डाकिये का
पत्र कब लाएगा
वो मेरे घर कब आएगा!!

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