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गुरुवार, 29 जून 2017

सुहाना सफ़र

बात उन दिनों की है जब मैं एम.बी.बी.एस की पढाई कर रही थी और अपने परिवार से दूर अपने कॉलेज के हॉस्टल में रह रही थी. मेरी ग्रीष्मकालीन छुट्टियाँ पड़ी थी और मैं अपने मम्मी-पापा के पास जा रही थी. मेरा रिजर्वेशन बहुत पहले से था. लेकिन सफ़र से एक दिन पहले मेरी तबियत बिगड़ गई लेकिन मैं अपना टिकेट कैंसिल नही करवा सकती थी क्योकि मेरी सभी रूम पार्टनर जा चुकी थी और मैं अपने हॉस्टल में अकेली थी. अतः मैं रुक भी नही सकती थी वार्डन ने कहा बेटा मुझे भी जाना है. तुम्हे अगर रुकना है तो तुम अपने लोकल गार्डियन के पास चली जाओ. लेकिन मेरा मन तो मम्मी-पापा के पास लटका हुआ था. सो उसी हालत में ट्रेन पकड़ने चल पड़ी. लेकिन मेरा बुखार बढ़ता गया साथ ही मुझे सर में दर्द भी था. मैं काफ़ी बेचैन थी. बगल में बैठे एक व्यक्ति ने डॉक्टर को बुला दिया. लेकिन डॉक्टर ने कहा कि, “अगर इनको दवा और पानी की पट्टियां नही दी गई तो मुश्किल हो जाएगी.” डॉक्टर ने कहा “मैडम आपके साथ कौन है”
“सर, मैं तो अकेली हूँ”
“फिर आप कैसे करोगी.”
मेरे बगल में बैठे व्यक्ति ने कहा, “सर, कोई बात नही. अगर बर्फ मिल जाए”
“जी ज़रूर.”
अगले ही पल अनजान व्यक्ति ने मुझे दवाई दे कर मुझे लेट जाने को कहा और मेरे सर पर पट्टियाँ करने लगा. मुझे जैसे बुखार उतरा मुझे नींद आ गई लेकिन वह व्यक्ति पूरी रात मेरे सर पर पट्टियां रखता रहा और मेरे सिरहाने ही बैठा रहा. जब मेरी सुबह नींद खुली तो मैंने उन्हें वैसे ही बैठे पाया. मैंने पूछा, “आप रात को सोए नही.” उन्होंने कहा, “कोई बात नहीं अब आपकी तबियत ठीक है?”
“जी अच्छा लग रहा है”
“अब थोड़ी ही देर में मेरा स्टेशन आने वाला है. अतः मैंने सोचा आपको बताता जाऊं.”
“तो आप जा रहे है.” मैं बड़ी आत्मियता से बोली तो उन्होंने कहा, “जाना तो पड़ेगा. हमारा-आपका साथ यही तक का था.” उतरते-उतरते मैंने उनका हाथ पकड़ लिया. “अपना नाम तो बताते जाओ मेरे फ़रिश्ते!”

“मैं इतना महान भी नही हूँ.” जाते-जाते उन्होंने मुझे अपना नाम विनीत बताया और वे उतर पड़े फिर कहा “अगर तक़दीर ने चाहा तो हम फिर मिलेंगे.”

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