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शिक्षा,  शिक्षित,  और शैक्षणिक संस्थान  ये सब आपस में ऐसे जुड़े है  जैसे एक माँ से बच्चे के हृदय के तार  जो दिखाई कभी नहीं देता  पर बच्चों के...

गुरुवार, 22 जून 2017

मायावी दुल्हन (भाग 1)

आज हमारे गावं में एक शादी थी. सब उसी बारात से लौट कर आयें हैं. हर किसी के जुबान पे एक ही बात हैं. लड़की बड़ी सुन्दर मिली हैं. क्या नसीब लिखवा के लाया हैं लोकेश. इतनी सुन्दर पत्नी और इतना अच्छा ससुराल हर किसी को नसीब नहीं होता. लेकिन किसे पता था. यही नसीब अगले ही दिन बदनसीबी में बदलने वाला हैं. खैर पूरी रात हम लोग यही चर्चा-परिचर्चा करते रहे कि लड़का बिल्कुल साधारण परिवार से था फिर भी इतनी सुन्दर बहू और इतना सारा उपहार पुरे गावं में चर्चा का विषय थी लड़की पढ़ी लिखी भी हैं. फटाफट अंग्रेजी बोलती हैं. सब लोग यही बात कर रहे हैं कि उस परिवार को इस लड़के में ऐसा क्या दिखा कि अपनी परी जैसी सुन्दर लड़की का विवाह इसके साथ कर दिया. खैर इस चर्चा को यही विराम देते हुए मैं सोने चला गया.
लेकिन जब सुबह मेरी नींद खुली तो गावं का पूरा नजारा ही बदला हुआ था. सब लोग बदहवास से लोकेश के घर की ओर भाग रहे थे. मेरी माँ भी मेरी चाय रखते हुए. बाहर निकल गयी और साथ में कहती गयी जल्दी आ जाना लोकेश के घर मैं जा रही हूँ बेटा देर मत करना. मैं माँ से पूछना चाहता था कि लोकेश के घर ऐसा क्या हैं लेकिन माँ तबतक आँखों से ओझल हो गयी. मैं चाय पीकर कपड़े पहन कर लोकेश के घर की ओर चल दिया. जिसे देखो वही लोकेश के घर की ओर दौड़ रहा था. मैंने एक दो लोगो से पूछना भी चाहा लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया खुद ही देख लो. मैं अजीब कशमकश में था. कदम अपने आप बढे जा रहे थे.
खैर मैं भी लोकेश के घर तक पहुँच गया लेकिन वहां तो भारी भीड़ जमा थी लग रहा था पूरा गावं वहीँ उमर गया हैं. जब मैं भीड़ के नजदीक पहुंचा तो मेरा भी कलेजा मुंह को आ गया. जमीन पर लोकेश का खून से लतपथ मृत शरीर पड़ा था. जिस लोकेश को हम लोग उसके घर रात को हँसता मुस्कुराता छोड़ गए थे. वो इस तरह लाचार पड़ा हैं देख कर यकीन नहीं हो रहा था. पर हकीकत यही थी लोकेश हम सब को छोड़ कर बहुत दूर जा चुका था और फिर कभी हमसे नहीं मिलने वाला था. यह सब सोच कर मेरी भी आंखे डबडबा गयी. उसके परिवार वालों का रो-रोकर बुरा हाल था और हो भी क्यों न अपना जबान बेटा खोया था उन्होंने जिसके घर में कल तक ख़ुशी के गीत गाए जा रहे थे आज मातम पसड़ गया हैं. मैंने जानना चाहा कि आखिर ये सब हुआ कैसे तो भीड़ से किसी बुजुर्ग की आवाज आई कि उसी कलमुही की वजह से सब हुआ हैं. रात को आई और आज ही अपना मुंह काला करके किसी के साथ भाग गई. "लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है ताई?" मैंने भी उसमे जोड़ा, "अगर उसे भागना ही था तो उसने लोकेश को मारा क्यों?" इस पर सबका माथा ठनका तेरी बात तो सही है. फिर ऐसा क्या है जो हमलोग समझ नहीं पा रहे हैं. इस बात का जवाब तो हमें लड़की के घर जाकर ही लगेगा. सब लोगो की सहमती बनी फिर कुछ लोग लड़की वालों के घर असलियत का पता लगाने के लिए निकल पड़े. शाम तक वो लोग लौट आयें. लेकिन उनके लौटने पर तो एक और धमाका हुआ कि लड़की के घर जहाँ हमलोग कल बारात लेकर गए थे वहां तो कुछ है ही नही. बंजर पड़ी जमीन हैं. हमने गावं वालों को समझाने की भी कोशिश की लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी.
यह सब सून कर गावं वालों का बुरा हाल था किसी के समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ये कैसी मुसीबत आन पड़ी है. सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि लोकेश के क्रिया कर्म के बाद इस पर अभियान चलाना हैं. हम लोगों के बीच आसपास के दस गावों की पंचायत बुलाने की बात तय हुई सोलहवे दिन पंचायत बुलाई गई और उसमे तय किया गया कि हमारे किसी भी गावं में लड़के-लड़की की शादी करेगा तो पहले पंचायत को खबर करेगा.
कुछ महीनो के इंतजार के बाद सरपंच साहब के घर में उनके बेटे की शादी का मौका आया लेकिन सरपंच साहब ने हम लोगों को याद नहीं किया और हम लोगों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि सरपंच साहब के घर होने वाले किसी ख़ुशी में भंग डाल सके. शादी की तयारी जोरो पर थी. पर गावं में लोगों का दिल बैठा जा रहा था किसी अनहोनी की आशंका में.
शादी का दिन आ गया बड़े धूमधाम से शादी हुई. दुल्हन भी घर आ गई. गावं वालों ने चैन की साँस ली. अगले दिन प्रीति-भोज का आयोजन था. सबलोग दुल्हन की ही तारीफ कर रहे थे लेकिन सब के दिल में कहीं न कहीं यह डर भी था कि लोकेश वाली घटना फिर से न हो जाए. खैर तीसरे दीन ही जमींदार साहब का बेटा हनीमून पर चला गया. हनीमून मनाने अतुल गया था पर खुश पूरा गावं था कि चलो सब कुछ अछी तरह से निपट गया.
पर गावं वालों को कहाँ पता था कि उनकी ख़ुशी बस दो चार दिनों की ही हैं. मैं रात को सो रहा था. अचानक मेरी नींद खुली मैं पूरी तरह पसीने से लथपथ था. समझ नहीं आ रहा था कि अभी-अभी जो सपना मैंने देखा वो सच हो गया तो गावं में मुझे कोई रहने नहीं देगा. मैं किसी से कहूँ भी तो कैसे. मैंने माँ को जगाया. माँ मेरी आवाज सूनकर उठ बैठी. बोली क्या हुआ नींद नहीं आ रही है या अपने बेटे की शादी के सपने देख रहे हो. मैंने कहा माँ तुम भी बस एक ही रट लेकर बैठी रहती हो. और क्या करूँ तुम और तुम्हारी पत्नी को तो बेटे के शादी की बिल्कुल चिंता ही नहीं है. मैं उसकी दादी हूँ. मुझे अपने राजकुमार को दूल्हा बनते देखना हैं न लेकिन माँ साथ ही मेरे चेहरे के बदलते भाव को भी देख रही थी जिस पर ख़ुशी बिल्कुल नहीं थी. माँ ने फिर पूछा बेटा बता क्या बात है तू क्यों चिंतित है. "माँ मेरी चिंता का कारण मेरा अपना नहीं है. माँ मैंने सपने में देखा कि अतुल का प्लेन क्रैश कर गया हैं और उसमे उसकी मौत हो गई है. बेटा शुभ-शुभ बोल अभी-अभी इस मुश्किल से गुजरे हैं. अब ऐसी बात मत कर. माँ मैं भी इसी बात से डर रहा हूं. माँ ने सांत्वना दिया कि घबराने की कोई बात नहीं है. जब हम डरे हुए होते हैं तो ऐसे ही ख्याल आते हैं. सो जाओ.
जब मैं सुबह उठा माँ ने मेरी कान में आकर कहा, "तूने जो कहा था वो सच निकला" "क्या?" "हाँ, बेटा जमींदार साहब का रो-रोकर बुरा हाल है. तू ही उन्हें कुछ सांत्वना दे सकता है." "माँ क्या सांत्वना दूँ. जिसका जवान बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा. उसे ढाढ़स बंधाना आसान नहीं" "बेटा मैं जानती हूं लेकिन सब्र तो रखना ही पड़ेगा. हम जानेवाले के साथ तो नही जा सकते." मैं बड़ी हिम्मत जुटा कर जमींदार साहब के पास पंहुचा. मुझे देख कर वो फुट-फुट कर रोने लगे. मैं भी अपने आप को रोक न सका.

आगे जारी.........................

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