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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

बुधवार, 7 जून 2017

सूरज दादा

सूरज दादा आते हैं
जगमग जग कर जाते हैं
हर मौसम में खुशियों की
सौगात वो हमको देते हैं
ठंड के मौसम में धुप सेकना
सबको अच्छा लगता हैं
मिलजुलकर सब बैठ संग-संग
पिक्निक का आनंद हैं लेते
गप्पे-शप्पे हंसी-ठिठोली
चर्चा और परिचर्चा भी
सब मिलकर कर लेते हैं
जब आता वसंत का मौसम
सूरज की खिलती गर्मी से
पौधे मुस्काने लगते
चारों ओर हरियाली फैली
जग को भी महकाने लगती
पर ज्येष्ठ महीना आते-आते
हो जाते हैं सब बेहाल
अंदर हो या बाहर
ताबड़तोड़ पसीना गिरता
मन घबराने लगता सबका
सूरज दादा बस कर दो अब
और सहा नहीं जाता
आसमान में बादल छाते
झूम-झूम सब गाते
सूरज दादा घर को जाओं

बदरी बरसान आओं!!

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