शर्मा दम्पति पेशे से पत्रकार थे. और लखनऊ के पौष इलाके में
रहते थे. उनका एक बेटा था सुबह जिसका नाम सुनकर आस पास के सब लोग उनका बड़ा मजाक
उड़ाते थे. इसके माँ बाप को इसके लिए कोई अच्छा नाम नहीं मिला. पैसा नहीं हैं ये तो
समझ आता हैं पर नाम अच्छा रख लेते तो कौन सा शब्द कोष में शब्द कम पड़ जाता.
उनकी माली हालत के बारे में सबको पता था. अतः उनसे ज्यादा कोई
मतलब नहीं रखता था. क्या करे ईमानदार आदमी को यह सब झेलने कि आदत बन जाती हैं. पर
उनकी पत्नी इस बात पर हमेशा खिट-पिट करती रहती थी. वो हमेशा कहती आपके ईमानदारी का
क्या हमें तो इससे बदनामी ही मिल रही हैं.
लेकिन शर्मा जी फिर भी पत्नी को बारे प्यार से समझाते,
भाग्यबान तुम क्यू घबराती हो एक दिन ऐसा आयेगा जब मेरे काम और मेरे बेटे के नाम
दोनों की चर्चा होगी, लेकिन कब यह तो मैं भी नहीं बता सकता.
लेकिन बिधि को क्या मंजूर था यह किसी को कहाँ पता था, एक
दिन शर्मा जी सपरिवार कहीं घुमने जा रहे थे तो सड़क दुर्घटना में उनकी पत्नी और
शर्मा जी का आकस्मिक निधन हो गया.
लेकिन संजोग से उनका बेटा उसमे बच गया. अब पुलिस के लिए बड़ी
अजीब स्थिति थी. पुलीस के सामने उलझन थी कि बच्चें कि कस्टडी किसको दी जाए.
क्यूंकि उनके किसी रिश्तेदार का कोई पता नहीं था. न हीं उनके घर से ऐसी कोई चीज
बरामद हुई थी कि उनके परिवार का पता लगाया जा सके. पड़ोसी भी उनके विषय में कुछ नहीं
बता पाए. और सुबह की इतनी उम्र नहीं थी कि वो कुछ बता सके.
खैर जिलाधिकारी महोदय ने यह तय किया कि जब तक सुबह कि
कस्टडी के लिए कोई आगे नहीं आता तबतक जिलाधिकारी महोदय ही इसकी जिम्मेवारी
निभाएंगे. सुबह के घर से पुलिस को सिर्फ
एक पेन और एक डायरी मिली. साथ ही पिता कि एक डायरी जिसमे एक छोटा सा पत्र मिला
जिसमे लिखा था. बेटा मैं ज्यादा कुछ तो नहीं दे सकता लेकिन यह डायरी और पेन ही
तुम्हारे जीवन कि पूंजी हैं और मुझे पता हैं कि तुम इसके माष्यम से ही अपनी मंजिल
तलाश लोगे और एक दिन ऐसा आयगा जब तुम अपने पिता की दूरदर्शिता पर तुम्हे गर्व होगा. जब तुम अपनी मंजिल पर पहुंच जाओगे तब तुम
इस उपहार का मतलब समझ पाओगे.
हुआ भी ऐसा ही सुबह जिलाधिकारी महोदय के निगरानी में अपनी
पढाई बरी तन्मयता के साथ पूरी की. सुबह पढ़ने में बहुत तेज था. वह बड़ा होकर
पत्रकारिता को अपना पेशा बनाया धीरे धीरे डीएम साहब को भी सुबह से प्यार हो गया और
दोनों इस कदर घुल मिल गए कि सुबह को कभी पता ही नहीं चला कि वो उसके अपने माँ बाप
नहीं हैं जिनसे हर चीज के लिए इतनी जिद्द किया करता हैं. जब सुबह को पहली सैलरी
मिली तो वह पिता के हाथो में देते हुयें बोला पापा शायद आप मुझे भी अपनी तरह बड़ा
अधिकारी बनाना चाहते थे. लेकिन पापा मैं ऐसा नहीं कर पाया. मुझे माफ करना पापा
लेकिन आपकी यह इच्छा हमारे दोनों छोटे भाई बहन पूरी करेंगे. ऐसी बात नहीं हैं पगले
इतना कहते हुयें डीएम साहब कि आंखे डबडबा गई. अपने पिता के आँखों में आँशु देख कर.
सुबह सकपका गया. कि कंही मैंने कोई गलत बात तो नहीं कह दी जिससे पापा के दिल को
ठेस पंहुंची हैं. उसने फिर पूछा पापा क्या हुआ. आप रोने क्यं लगे. बेटा आज बड़ी ही
पुरानी बात याद आ गई हैं. जो तुमसे जुड़ी हैं. क्या पापा. चलो बेटे मैं तुम्हे
दिखता हूं. डीएम साहब कि पत्नी उन्हें रोकती रही कि अब इन बातो का क्या फायदा.
लेकिन डीएम साहब नहीं माने और अपने कमरे में आलमारी से एक पुराना डब्बा निकाल लाए जिसमे
चमचमाती हुई एक पेन और डायरी थी. इसे देखकर भी सुबह को कुछ याद नहीं आया. फिर डीएम
साहब ने ही उसे याद दिलाया कि यही तुम्हारा अतीत भी हैं और तुम्हारा आज भी. कैसे उस
डायरी को खोलो उस डायरी के खुलते ही एक तस्वीर निकली जिसे देखकर सुबह.
हक्का-बक्का रह गया उसके सामने वर्षों पहले कि एक दुन्धली तस्वीर जो
काफी भयावह थी चलचित्र कि भांति चल गई. पापा मैं गाड़ी में जा रहा था तो अचानक एक
धमाका हुआ और मैं दूर जा गिरा. क्या आपको उसमे चोट नहीं लगी. बेटे उसमे तुम्हारे
साथ मैं नहीं था. उस दिन ये दोनों जो तुम्हारे असली माता पिता हैं वो थे और इसमें
उनकी मौत हो गयी. तुम अकेले थे जो बच गए. चूँकि तुम्हारा कोई नहीं था. अतः मैं
तुम्हे अपने साथ ले आया और आज तुम्हे यह सब दिखाने का मेरा उद्देश्य यह था कि
तुम्हारी कामयाबी ही तुम्हारे माता पिता को तुम्हारी असली स्राधांजलि हैं.
तुम्हारे पिता बड़े महान व्यक्ति थे. जिन्होंने तुम्हारे जन्म के समय ही कह दिया कि
मेरा बेटा एक दिन महान आदमी बनेगा और वह संच मेरे सामने खड़ा हैं.
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