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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

मंगलवार, 6 जून 2017

तिरुपति

वो हंसी वादियाँ
वो खुला आसमां
वो तन्हाइयां
चल रही वादियों में
वो पुरवाइयां
सरसराती हुईं पेड़ो की डालियाँ
दनदनाती हुईं सी चली गाड़ियाँ
वो सुहाना सफ़र
मस्त एहसास था
भोर को देखना
कुछ वहां ख़ास था
घंटियो की ध्वनि मंदिरों में बजी
भक्त में जोश दर्शन का
ऐसा भरा
चल पड़े वो निकल
मंदिरों के तरफ
भीड़ चारों तरफ
पर नहीं शोर था
सब मग्न थे कहीं
कुछ अलग बात थी!!

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