यह दोस्ती हम नही तोड़ेंगे
तोड़ेंगे दम मगर
तेरा साथ न छोड़ेंगे
यह कहानी ऐसे ही
दो दोस्तों कि है. जिन्होंने अपने बचपन के दिन से लेकर अपने जवानी के दिन एक साथ
बिताए और एक वक्त आया जब जिस ज़िम्मेदारी को इंसान को खुद निभाना पड़ता है. उस वक्त पर भी इन्होने अपनी दोस्ती को कभी
झुकने नही दिया. गौरव और गौतम नाम के दो पड़ोसी पर
साथ-साथ पढ़े दो दोस्त की कहानी है.
गौरव और गौतम का घर बिल्कुल आमने सामने था और
दोनों की
उम्र में भी बस 4-5
महीने का फर्क था. अतः
दोनों पढ़ते भी एक क्लास में ही थे. दोनों ने एक ही स्कूल से अपनी पढाई पूरी की, दोनों के बीच कभी इस बात का डिस्कशन नही होता
कि किसको कितने नंबर आए है.
पढाई पूरी करने के बाद दोनों को नौकरी भी संजोग
से एक ही शहर में मिली. एक को लेक्चरर की नौकरी मिली तो दुसरे को पुलिस की. कुछ दिन दोनों साथ-साथ रहे फिर गौतम का ट्रान्सफर दुसरे शहर हो
गया और इस प्रकार वर्षो के साथ में थोड़ी सी रूकावट आ गई और दोनों फ़ोन से एक दुसरे
से बात करते रहते थे. इस बीच दोनों की शादी हो गई और पूरी तरह अपनी गृहस्थि में मग्न हो गए. लेकिन एक जो हादसा गौरव के साथ हुआ उसके
बाद दोनों की
ज़िन्दगी बदल गई.
गौरव अपने किसी काम से दुसरे शहर जा रहा था, उसी दौरान उसके बस में कुछ लूटेरे घुस आए और वे
लोगो से छीन झपट करने लगे.
इसी बीच किसी
ने पुलिस को फ़ोन
कर दिया और कुछ देर के बाद वहां पुलिस आ पहुंची. पुलिस के साथ लूटेरो का आमना-सामना शुरू हुआ. इस दौरान एक गोली गौरव के सर को भेदती निकल गई. आनन्-फानन में गौरव को अस्पताल ले जाया गया
लेकिन गौरव को नही बचाया जा सका. गौरव ने अंतिम सांस लेने से पहले बस अपने दोस्त
गौतम से मिलने कि इच्छा जताई जिसे तत्काल पूरा किया गया. गौतम जैसे ही गौरव के सामने
आया, गौरव ने रोते
हुआ कहा, “मैंने अपनी कुछ सांसे तेरे लिए ही बचा के रखी है.” गौतम की आखों में आसू तैर गए बड़ी मुश्किल से उसने अपने
आप को रोका और बोला, “बता गौरव
क्या कहना चाहता है.”
“बस मेरा इतना सा काम कर देना की मेरे बीवी-बच्चो और माता-पिता को यह नही पता
चलना चाहिए कि मैं
मर चुका हूं. मैं तुम्हारे रूप में जीना चाहता हूं और सदा के लिए जीना चाहता हूं. आज से उन सबकी ज़िम्मेदारी तुम्हारी. मैं नही जनता
कि तुम यह सब कैसे करोगे लेकिन इतना जनता हूं कि तुम सब संभाल लोगे.” इतना कहते हुए गौतम के हाथ पर गौरव का गर्दन लुढ़क गया. यह सब देख कर
गौतम अपने आप को संभाल नही पाया और फुट-फुटकर रोने लगा. अपने इतने सख्त पुलिस अधिकारी को इस तरह फुट-फुटकर रोते देख सब हतप्रभ थे. ख़ैर कुछ देर बाद गौतम ने अपने आपको संभाला और
गौरव की डेड बॉडी को लेकर शवगृह
में संभाल कर रखवाने का आदेश देकर घर की ओर चल पड़ा.
जब गौतम घर पंहुचा और सीधा बाथरूम में चला गया और नल के नीचे बैठ गया और आधे घंटे तक बाहर नही
निकला तो उसकी पत्नी निशा को
कुछ शक हुआ और वह बाथरूम का दरवाजा खटखटाने लगी और बोली, “क्या बात है आज बाथरूम में ही बैठे रहोगे? किसी अपराधी ने मूड ख़राब कर दिया क्या??” धीमे से आवाज़ आई, “आ रहा हूं” पर गौतम का गला रुंधा हुआ था. यह महसूस कर निशा
हैरान हो गई क्योकि आदतन रोने का काम तो सिर्फ निशा का था. गौतम तो चट्टान की तरह मजबूत थे. फिर आज ऐसा क्या हुआ जिसने पत्थर
को भी
आँसू बहाने पर मजबूर कर दिया.
जब गौतम बाथरूम से बाहर आया तो उसकी आँख लाल और सूजी हुई थी. निशा समझ गई कि वो बाथरूम में
नहाने के लिए नही रोने
के लिए अपने आप को बंद किया था. निशा ने पीछे से हाथ कंधे पे रखते हुए कहा, “ऐसा क्या हो गया गौतम जो तुम मुझसे भी शेयर नही कर सकते, ऐसा
क्या हुआ
है. जब तक तुम मुझे बताओगे नही मैं
कैसे जानूंगी
और शायद तुम्हारी
मुश्किल का हल मेरे पास हो.”
“निशा काश ऐसा
होता.”
“पर
बताओ तो”, गौतम फिर निशा की गोद में अपना सर रखकर बिलख-बिलख कर रोने लगा और फिर जो बात उसने कही वह सुनकर तो थोड़ी देर को निशा भी सन रह गई लेकिन फिर उसने अपने आप को संभाला और सोचा इस मुश्किल घडी में,
मैं अगर घबरा गई तो गौरव के परिवार और गौतम दोनों को सहारा कौन देगा. अतः मुझे सूझ-बुझ से काम लेना होगा.
फिर हम दोनों में तय हुआ कि मैं एक झूटी चिठ्ठी
को लेकर गौरव के घर जाउंगी और उसकी पत्नी श्रेया को जाकर बोलूंगी कि गौरव कही चला गया है और उसने
कहा, “मुझे खोजने की कोशिश न की जाए. मैं अब कभी घर लौटकर नही
आऊंगा. आज से आपका बेटा
गौतम ही बाबूजी समझ लीजियेगा,
आपका दो नही एक ही बेटा है. मैं आप लोगो के लिए कुछ न कर सका इस बात का मुझे
बेहद अफसोस है लेकिन
मैं इतनी दूर जा रहा हूं
कि शायद फिर कभी लौट न पाऊं. अतः मेरा इंतज़ार न करे और गौतम को मेरी ज़िम्मेदारी सौप दे. यह मैं सिर्फ इसी बात के लिए लिख रहा हूं क्योकि आप लोग इसे अपने तक ही न रखले.”
इस तरह गौरव की कहानी यही पर समाप्त हो गई. कुछ
दिन घर वाले काफी दुखी रहे लेकिन उसके बाद सब अपनी ज़िन्दगी में लग गए. अब दोनों
परिवार एक साथ रह रहे थे क्योंकि
गौतम सबको अपने साथ ले आया था. लेकिन सच कहाँ छुपता है.
लगभग 5 साल बाद एक दिन दीनानाथ जी पार्क में टहल
रहे थे, तभी उनकी नज़र उनके पुराने मित्र शम्भू-शंकर पर पड़ी. दोनों ने एक दुसरे को
पहचान लिया और गले लग गए. शम्भू-शंकर जी देर तक दीनानाथ जी के गले से चिपके रहे
फिर छोड़ा तो दीनानाथ ने देखा कि उनके आँख से आँसू निकाल रहा था. उन्होंने कहा, “हम
मिले हैं यह तो ख़ुशी की बात हैं पर तुम रो क्यों रहे हो.”
“रोऊँ क्यों
नहीं. मैंने तुम्हारे बुढापे की लाठी, तुम्हारी एक लौटी संतान की जान मेरी खातिर गई हैं.
मैं कैसे भूल सकता हूं.”
“यह
क्या कह रहे हो? मेरा तो बेटा ही नालायक निकला की साड़ी ज़िम्मेदारी से मूंह मोड़कर
पता नहीं कहां चला गया.”
“तुम
यह क्या कह रहे हो? उसकी प्राण तो मेरे सामने गई थी. हाँ और वहां पर तुम्हारे बेटे
का दोस्त गौतम भी था.”
“नहीं,
यह नहीं हो सकता. तुम झूट बोल रहे हो!”
“भला
मैं क्यों झूट बोलूँगा?!”
“ठीक
हैं तुम चलो मेरे साथ इस बात का फैसला गौतम के सामने ही होगा!”
दोनों दोस्त गौतम के पास पहुंच गए. शम्भू
शंकर जी को देख कर गौतम चौंक गया पर वह पुलिसवाला था उसने बगैर वक्त गवाए बात बदल
दी. “आइए-आइए आप कब आए”
“अभी-अभी
लेकिन मैं क्या सुन रहा हूं. तुमने दीनानाथ को क्या झूठी कहानी बताई है. उसके वीर
बेटे को कायर कैसे बना दिया”. अब बात छुपाने का कोई फायदा नहीं था. सो गौतम ने
सारी बात बता दी. अब दीनानाथ जी का गुस्सा सातवे आसमान पर था उन्होंने गौतम को कोसना
शुरू किया लेकिन गौतम ने धीरज से काम लेते हुए उन्हें समझाया कि यह सब उसने गौरव
के कहने पर ही किया लेकिन उसने गौरव के मृत शरीर को आज भी सुरक्षित रखे हुए है, ताकि
आप उसका अंतिम दर्शन कर सके और उस वीर का अंतिम संस्कार सम्मान के साथ हो सके. यह
सुनते ही दीनानाथ जी मुर्चित होकर जमीन पर गिर पड़े. सब लोगो ने उन्हें संभाला और
कुछ देर बाद जब उन्हें होश आया तो उन्होंने गौतम से कहा अब तो दिखा दे अपने भाई
को. कम से कम एक बार उसे जी भर के देख तो लूँ. तेरे कंधे पर सारी जिममेदारी डालकर
खुद चैन की नींद सो रहा है.
गौरव को देख कर दीनानाथ जी
अपने आप को संभाल नही पाए और फुट-फुटकर रोने लगे. बड़ी मुश्किल से गौतम और उनके
दोस्त शम्भू शंकर ने उन्हें संभाला और फिर गौरव के अंतिम संस्कार की क्रिया शुरू
हो गई. इसके बाद आजीवन गौतम ने गौरव के परिवार की पूरी जिममेदारी निभाई. अपना हर
फ़र्ज़ पूरा किया.
इन दोनों कि दोस्ती अमर है और
इनसे हम सबको सीखने की ज़रूरत है कि सच्चा प्रेम इंसान को कितनी ताकत देता है.
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