वो उमर थी सोलह साल
जमाना दुश्मन था
चढ़ रहा था प्रेम बुखार
जमाना दुश्मन था
कुछ पता न खुद का हाल
ज़माना दुश्मन था
जब किया प्रेम इज़हार
गई मुझको वो टालम-टाल
ज़माना दुश्मन था
कहाँ दोस्त बने कब यार
जो तुझको चढ़ गया प्रेम बुखार
मैं तो जीऊँ धरातल पार
मुझे कोई करना नहीं हैं प्यार
ज़माना दुश्मन हैं
तुम ढूंढ लो कोई प्यार
तुम्हे मिल जाएंगे दस बार
मुझे तो करना बड़ा विचार
नहीं मानेगा मेरा परिवार
ज़माना दुश्मन हैं
प्यार नहीं ये खेल समझ तू
कर लूँगा तेरा इंतज़ार
बस हाँ कह दे इकबार
ज़माना दुश्मन हैं
हुई उमर हैं बतीश पार
तू आई नहीं इक बार
जमाना दुश्मन हैं
अब कर दे तू बस हाँ
नहीं तो दे दूंगा मैं जान
तू कर दे अब इजहार
तुझे भि है मुझे ही प्यार
नहीं तो किसका है इंतजार
बता मन मेरा है बैचैन
ज़माना दुश्मन हैं
ले के वो बैंड बाजा आज
सामने पहुंची हैं मेरे पास
दुल्हन का जोड़ा हैं बड़ा सुर्ख
होश दुल्हे के हैं अब गायब
होठों पे लग गए ताले आज
करूँ मैं कैसे अब इज़हार
ज़माना दुश्मन हैं!!
हुई उमर हैं बतीश पार
तू आई नहीं इक बार
जमाना दुश्मन हैं
अब कर दे तू बस हाँ
नहीं तो दे दूंगा मैं जान
तू कर दे अब इजहार
तुझे भि है मुझे ही प्यार
नहीं तो किसका है इंतजार
बता मन मेरा है बैचैन
ज़माना दुश्मन हैं
ले के वो बैंड बाजा आज
सामने पहुंची हैं मेरे पास
दुल्हन का जोड़ा हैं बड़ा सुर्ख
होश दुल्हे के हैं अब गायब
होठों पे लग गए ताले आज
करूँ मैं कैसे अब इज़हार
ज़माना दुश्मन हैं!!
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