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शुक्रवार, 23 जून 2017

पहाड़ों की व्यथा

पहाड़ो की अपनी ही व्यथा है. अजीब सी उनकी पटकथा है. अकेलापन, सूनापन. ख़ामोशी ही उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा है लेकिन प्रगतिशील समाज ने उन्हें ख़ुशी देने की कोशिश की लेकिन इस कोशिश में वे पूरी तरह कामयाब न हो सके और ख़ुशी देने के चक्कर में दर्द दे दिया. पहाड़ो के सीने को मशीनों के माध्यम से चीर कर उस पे बहुमंजिला ईमारत खड़ा कर अपने पैसे बनाने का एक बेहतरीन उद्योग खड़ा कर लिया. पहाड़ो ने उन्हें अपनी ओर खीचा था अपना अकेलापन बाटने के लिए न कि उन्हें पैसे बनाने की मशीन बनाने के लिए. पहाड़ो के बीच बसी छोटी-छोटी  लकड़ी के रंग बिरंगे घर उनकी शोभा बढ़ाते है. जबकि बड़ी-बड़ी इमारते उनका मुंह चिढाते है.
      साथ ही हर जगह लोगो के द्वारा फैलाए गए कचड़ो के सड़ने से जो बदबू निकलती है. उससे जो प्रदुषण फैलता है. वह पहाड़ के लिए बड़ा खतरा है. जिसका जीता जागता उदाहरण उत्तराखंड में केदारनाथ की घटना है, जिससे पूरा देश वाकिफ है. इस घटना को कई वर्ष बीत जाने के बावजूद हम उसे भुला नही पाएं है.
      लेकिन उस घटना से हमने कुछ सबक सिखा क्या? शायद हमारा जवाब नकारात्मक ही होगा. क्योकि हमे तो बस पैसा कमाना और अपनी सुख-सुविधा को बढ़ाने कि होड़ में सबसे आगे पहुचने कि जिद है. जो हमे हमारी सभ्यता, संस्कृति सबको भुला देने के लिए हमे मजबूर कर रही है.

      पहाड़ो की खूबसूरती और उनकी पवित्रता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते है कि वहां बारिश के लिए इंतजार नही करना पड़ता, दिन में एक दो बार बारिश कि बुँदे टपक ही जाती है. वहां न तो आपको ठन्डे पानी के लिए फ्रिज की ज़रूरत है, न ही पंखे और एयर-कंडीशन की ज़रूरत है. यह नज़ारा देखकर हमे कम से कम इतना तो अवश्य सिखना चाहिए कि अगर हम प्रकृति को सिर्फ सुकून और सफाई देंगे तो बदले में वो हमे कृत्रिम जीवन से प्राकृतिक जीवन की और ले जाने में कोई कसर नही छोड़ती इसका अदभुत  नमूना आप नैनीताल की पहाड़ियो में जाकर महसूस कर सकते है और शायद यह सोचने के लिए मजबूर हो जाए कि आ अब लौट चले. बहुत उड़ान भर ली अब और नही. अपनी धरती तो पहले से ही स्वर्ग है फिर हम किस स्वर्ग को खोजने चले है. बेकार ही हम मृगमरीचिका में पड़े है. सारी खुशिया अपने आंगन में तो पहले से ही मौजूद है. है भारत माता तुम धन्य हो जो तुमने इन सभी मौसमो से हमें नवाज़ा. यहाँ का हर मौसम अपने आप में अनोखा है. अतुलनिए है अविश्मरनीय हैं. जिसका वर्णन सिर्फ कुछ शब्दों में नहीं किया जा सकता.

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