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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

शनिवार, 24 जून 2017

आचरण

कोयला होत न उजला
सौ मन साबून खाए
यह मन निर्मल होए जब
संत संगति को पाए

पूरे जग को रौशनी
दीपक देकर जाए
खुद के तले अंधेरा है
वर्षो बरस बीत है जाए

कोयला होत न उजला
सौ मन साबून खाए
राजनीति के गलीयारो में
सब कुछ काला होए

ज्ञान की गंगा बहाकर
अंधकार तुम दूर करो
वक्त आज वो आ गया है
हर घर में विद्या ज्योति जलाओ

मन के अंधकार को दूर कर
जग को प्रकाश पूंज से भर दो
हर घर में रौशनी हो नई उम्मीद का दीया

हर घर से गुज़रे ये ज्ञान की गंगा!

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