मोती सी बारिश की बुँदे
गिरी हैं
दिल चाहता हैं समेटूं इसे
मैं
बाहों में भर लूँ भिगों लूँ
मैं खुद को
ये बारिश की बुँदे गज़ब ढा
रही हैं
ये बारिश की खित-पिट
ये मौसम की चिक-चिक
लगता हैं जैसे धरा गा रही
हैं
वो धुन कोई सुन्दर सुना जो
रही हैं
हैं मौसम मनोरम सुहाना सफ़र
हैं
कई मायनों में गज़ब का ये
दिन हैं
सुबह हो रही हैं सभी खुश
हुए हैं
अब आ गया बारिशों का महीना
हरी ओढनी से धरा ढक सकेगी
गज़ब ढा रहा आसमां
नीला-नीला!!
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