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तुम से तुम तक

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मंगलवार, 20 जून 2017

बारिश की बुँदे

मोती सी बारिश की बुँदे गिरी हैं
दिल चाहता हैं समेटूं इसे मैं
बाहों में भर लूँ भिगों लूँ मैं खुद को
ये बारिश की बुँदे गज़ब ढा रही हैं
ये बारिश की खित-पिट
ये मौसम की चिक-चिक
लगता हैं जैसे धरा गा रही हैं
वो धुन कोई सुन्दर सुना जो रही हैं
हैं मौसम मनोरम सुहाना सफ़र हैं
कई मायनों में गज़ब का ये दिन हैं
सुबह हो रही हैं सभी खुश हुए हैं
अब आ गया बारिशों का महीना
हरी ओढनी से धरा ढक सकेगी

गज़ब ढा रहा आसमां नीला-नीला!!

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