झिलमिलाती हुई
चांदनी रात थी
डगमगाती हुई मेरी
साँस थी
कुछ बुझते हुएं से
एहसास थे
दिल तड़प था रहा
कदमें बोझिल हुई
मन में मिलने कि
उनसे जो प्यास थी
झिलमिलाती हुई
चांदनी रात थी
सपने खो से गए मन के
एहसास से
सपने के आगे था डर का सितम
वो डराने लगा था
पुनः आजकल
झिलमिलाती हुई
चांदनी रात थी
जाम खाली पड़ा प्यास
के आस में
मन के उलझन को सुलझा
नहीं मैं सकी
गर कभी जिंदगी में
खुदा भी मिला
क्या निभा मैं
सकुंगी ये रिश्ता दुबारा
जहाँ से मैं बैरंग
लौटी कभी
लाख चाहा मगर मुझको
नफरत मिली
अब क्या हुआ जो चले
आए तुम
मैं तो जैसी थी पहले
हूँ वैसी अभी
हैं वही बांकपन हैं
वही सब अकड़
मेरी खुद्दारी मुझसे
हैं कहती सदा
झुकना नहीं हैं
मुझे और अब!!
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