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प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों  है कठिन बहुत पीड़ा सहना  इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा  निःशब्द अश्रु धारा बनकर  मन की पीड़ा बह निकली तब  है शब्द कहाँ कु...

सोमवार, 26 जून 2017

वादियाँ

सुनो पपीहा बोल रहा हैं
कुछ कानों में घोल रहा है
चिड़िया की चह-चह कानों में
गुंजे बारमबार
एक डाल से दूजे पे घूमे फुदक फुदक के
बादल राजा घूम रहे है
मस्त मगन बेहाल
फूलों की भी सुन्दरता तो
कर दे मालामाल
धरती की है छटा  अनोखी
धरती दूल्हन बन बैठी है
हरियाली की चादर पर
रंग-बिरंगे फूल खिले है
सूरज के किरणों ने
धरती का कर दिया श्रगार
रात चांदनी लेकर आती
टिम-टिम करते तारे
अब पेड़ों के बीच चल रही
कितनी ठंडी बयार
हाड़ो को भी तोड़ डालती
ऐसी कापती रात
गर्म हवा तुम यहाँ भी आओ
राहत देदो आज
यह कैसा प्रदेश प्रभु
सब खोज रहे है मुझको
वरना मुझसे दुरी ही रखते है

हर प्रदेश के वासी!!

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