नदी आइना हैं नदी का किनारा
ये बहता हुआ जल हैं जीवन
हमारा
इसे स्वच्छ रखना हैं धर्म
हमारा
हमें पावन नगरी का दर्शन
हैं करना
हैं गंगा किनारे ये रमणीक
शहर
नगरी बनारस मुझे भा गया हैं
ये गंगा की लहरें ये बलखाती
नाँव
आरती शाम की दीपकों का
नज़ारा
भरी भीड़ में आस्था का नज़ारा
वो ठहरी हुई शाम की रागनी
भी
जैसे गंगा की लहरे ठहर सी
गई हो
सभी आरती में मगन हो रहे
हैं!
गली तंग इतनी की हम खो गए
हैं
मगर घुमने में मजा आ रहा
हैं
था नया वो शहर लोग सब अजनबी
थे
मगर गर्मजोशी से सब मिल रहे
थे
नजारा अजब था बड़ा उस शहर का
हर तरफ भीड़ थी पर सुकू चैन
भि था
गंगा कि पवन ख़ुशी दिख रही
थी
जमी आसमा मुस्कुराने लगे थे
शहर सो गया था पर हम जग रहे
थे
नदी की लहर शान से चल रही
थी
वो तनहइयो को सुना कुछ रही
थी
वजह गुनगुनाने की हमको मिली
थी!!
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