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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

अंतर्मन

वाह रे नारी तेरी कथा भी कितनी न्यारी
तेरे जन्म पे न ढोल बजे न नगाड़े
अपनों के चेहरे पर मुस्कुराहट
बड़ी मुश्किल से आई
कही कोई देख न ले कि
बेटी के जन्म पर माँ खुश हैं
कही कोई सास को ताने न मार दे
तेरी बहु कैसी है आई!

वाह रे नारी तेरी कथा भी कितनी न्यारी
घर के आँगन में चहकती चिड़ियों
की तरह रहती हरदम
नर की तो छोड़ो नारियों के
दिल में भी जगह बना न पायी अपने लिए
खुशियाँ बाँटती है सबके लिए
पर अपने हिस्से आती हैं झोली खाली!

वाह रे नारी तेरी कथा भी कितनी न्यारी
खुशियों के सागर में भी
प्यासी ही रहना तेरा नसीब
चांदनी रात में मन में छाया हैं अँधेरा
चंद नारियां ही अपना इतिहास लिख पाती हैं
ऐसा दिन कब आएगा जब हर नारी
अपना अनोखा इतिहास बनाएगी
अपने परिवार में अपनी जगह

सबको बतलाएगी!!

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