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बुधवार, 29 मार्च 2017

घर-आँगन

अपना तो हैं बस एक सपना
बस घर हो अपना-सा एक
जिसके चहुँ ओर हवाएं हो
हवाओं में फूलों की खुशबू
घर से बाहर तक फैली हो
सब कुछ हो साफ-सुथरा
फूल के बागीचे में
तितलिओं की बाहार हो
रंग-बिरंगे फूलों से
घर-आँगन हो महकता मेरा
सूर्योदय की पहली किरण के साथ
ज़िन्दगी मुस्कुराती हो आँगन में ऐसे
जैसे दुनिया की हर चीज़ पालि हो हमने
घर की दीवारे भी मुस्कुरा कर
कुछ कहना चाहती हैं
वह अपनी शीतलता भी
हम पर लुटाना चाहती हैं
हमे अपने छाव में बिठाना चाहती हैं
घर का सुख हैं उसमें रहनेवालों की शान्ति से
उनके बीच बंधी प्यार के डोर से
घर हो अपना तो बस ऐसा हो
आओ मिलकर के हम घर को मंदिर बनाए

जहां प्रेम और करुना की सागर बहाएं!!

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