अनायास ही आज हमारे मन में जागे वो
पल
साथ-साथ हम तुमने मिलकर जिनमे रंग
भरे थे
अनायास मन के आँगन में फिर से उत्सव
जागे
कहाँ-कहाँ हम साथ-साथ कितने वसंत
निकाले
पतझड़ के भी कितने मौसम साथ गुज़ारे
हमने!
डाल हाथ में हाथ खड़े हैं मंदमंद मुस्काते
कितनी बार छोड़ तुम जाते मूक विवश
मुद्रा में
अनायास फिर इन्द्रधनुष को देख मेरा
मन मुस्काए
अगले पल ही गहन सोच में मैं फिर से
खो जाती
अनायास फिर आज नयन में घूम गया वह
आँगन
जहां सांझ कि बेला में हम साथ-साथ
उतरे थे
प्रणय सफ़र का पहला दिन वो आज भी हैं
हमे याद!
अनायास ही आज हमारे मन में जागे वो
पल
साथ-साथ हम तुमने मिलकर जिनमे रंग
भरे थे
गर्मी-सर्दी-वसंत-सावन बीते मौसम
तमाम
जीवन के सुख-दुःख के भ्रम में
साथ तुम्हारा हैं हर पल में
अनायास ही आज हमारे मन में जागे वो
पल
साथ-साथ हम तुमने मिलकर जिनमे रंग
भरे थे!!
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